लखनऊ – भारतीय समाज वट वृक्ष का आदर करता है। इसके पीछे भले ही धार्मिक मान्यताएं हों, लेकिन उद्देश्य पयार्वरण संरक्षण का ही जान पड़ता है। पयार्वरण संरक्षण के प्रति प्राचीन काल से ही पूर्वज जागरूक और सक्रिय रहे है यही कारण है कि वृक्षों को धार्मिक आस्था से जोड़ कर त्यौहार और व्रत रहने की परम्परा है। पूर्वजो द्वारा वृक्षों के पूजा के साथ ही साथ उनका संरक्षण प्राथमिकता से किया जाता था। देश में वट सावित्री व्रत अखण्ड सौभाग्य के लिए महिलाओं द्वारा मनाया जाता है।
इस साल वट सवित्रि व्रत शुक्रवार 22 मई के दिन है। भारतीय जनमानस में व्रत और त्योहार की विशेष महत्ता है। देशभर में धार्मिक और वैज्ञानिक कारणों से व्रत और त्योहार मनाये जाते है। प्राचीनकाल से भारत वर्ष में प्रत्येक माह कोई न कोई व्रत त्योहार मनाया जाता है। उसी में से एक वट सावित्री व्रत अखण्ड सौभाग्य तथा पयार्वरण संरक्षण और सुरक्षा के लिए मनाया जाता है। वट सावित्री व्रत धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि से अमावस्या तक उत्तर भारत में और ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में इन्हीं तिथियों में वट सावित्री व्रत दक्षिण भारत में मनाया जाता है।
जेठ की अमावस्या पर बरगद की पूजा होती आ रही है। वट वृक्ष के नीचे ही सावित्री को अपना सुहाग वापस मिला था। इस पूजा का महत्व जीवन चक्र से जुड़ चुका है। यदि धरती को बचाना है तो बरगद व पीपल के अधिक से अधिक वृक्ष लगाने होंगे। कहावत है कि पीपल में ब्रह्म देव व बरगद में भगवान भैरों का निवास रहता है। इसलिए देवताओं का वास मानकर वृक्षों की पूजा की जाती है। धर्मग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है कि पीपल के पत्तों में देवी देवता वास करते हैं। इसे ऋषि, मुनियों की दूरदृष्टि ही कहेंगे कि उन्हें आने वाले समय की परेशानियां पता थीं। शायद इसी के चलते उन्होंने इन वृक्षों को धार्मिक महत्व से जोड़ दिया, ताकि ये संरक्षित रहें।
वट वृक्ष प्रकृति से ताल-मेल बिठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। मौजूदा समय में पयार्वरण को लेकर पूरा देश चिंतित है। वास्तव में देखा जाए तो पिछले 6० से भी ज्यादा सालों में देश की आजादी के बाद पेड़ तो लगे किन्तु वे पेड़ नहीं लगे जो वास्तव में पयार्वरण के लिए आवश्यक हैं। वनों के कटाव में बढ़ती जनसंख्या का भी महत्वपूर्ण योगदान है। इससे पयार्वरण प्रदूषण, प्राकृतिक और जैविक असंतुलन बढ़ा है, जिससे पृथ्वी पर प्राणी-मात्र के अस्तित्व का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। भारत में वृक्षो को धार्मिक आस्था से जोड़ कर त्यौहार और व्रत रहने की परम्परा है। यह व्रत भी इसी मान्यता के तहत मनाया जाता है।