ज्योतिष – रत्न क्या है और इसे क्यों धारण करना चाहिए यह एक बुनियादी सवाल है। वैसे तो रत्न एक किस्म के पत्थर ही होते हैं, लेकिन सभी पत्थर रत्न नहीं कहे जाते। इस बात को बेहतर ढंग से समझ लिया जाए तो हम रत्न को पत्थरों में से छांठकर निकाल सकते हैं। उनकी शिनाख्त कर उन्हें अपने दैनिक जीवन में बेहतर उपयोग कर सकते हैं
हम बिना सोचे समझे रत्नों का इस्तेमाल करते हैं तो उसका उल्टा असर भी पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में हमें नुकसान उठाना पड़ सकता है, इसलिए रत्नों का उपयोग जांच परख तथा सोच विचारकर करना चाहिए।
ज्योतिष के जानकरो का मानना है की कुछ पत्थर के पदार्थों के गुण चरित्र एवं विशेषताएं ऐसी होती हैं, जिन्हें देखते ही रत्न कह दिया जाता है। जैसे हीरा, माणिक्य, नीलम, पुखराज, पन्ना आदि को लोग रत्नों के नाम से पुकारते हैं। वास्तव में यह सारे पत्थर हैं लेकिन बेशकीमती पत्थर।
रत्न का विशेष अर्थ श्रेष्ठतत्व भी है, इसी वजह से इसे खास व्यक्ति को उनके महत्वपूर्ण कार्य के लिए रत्न शब्द से विभूषित किया जाता है। इतना ही नहीं भाग्य परिवर्तन में भी रत्न अपना प्रभाव दिखाता है। पृथ्वी के अंदर लाखों वर्षों तक पड़े रहने के कारण उसमें पृथ्वी का चुंबक तत्व तथा तेजसव आ जाता है। पृथ्वी के जिस क्षेत्र में जिस ग्रह का असर अधिक होता है, उस क्षेत्र के आसपास उस ग्रह से संबंधित रत्न अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। वास्तव में पृथ्वी ग्रहों के सहयोग से अपने अंदर रत्नों का निर्माण करती है, अतः इसे रत्नग भी कहा जाता है।
भौगोलिक दृष्टि से रत्न तीन प्रकार के होते हैं। इनमें पहला रत्न खनिज रत्न है। खनिज रत्न खदानों से प्राप्त किए जाते हैं। दूसरे जैविक रत्न होते हैं जिन्हें समुद्र से प्राप्त किया जाता है और तीसरे वनस्पतिक रत्न होते हैं। हिन्दू प्राचीन ग्रंथों में उच्च कोटि के लभभग 84 प्रकार के रत्न बताए गए हैं। समय-समय पर बहुत से नए रत्नों की खोज भी हुई है। रत्न ज्योतिष में नवरत्न के अलावा भी कई अन्य रत्न भी है। नव रत्न में गोमेद, नीलम, पन्ना, पुखराज, माणिक्य, मूँगा, मोती, लहसुनिया और हीरा रत्न आते हैं।
इस लेख में दी गई जानकारियों के पूर्णतया सत्य व सटीक होने का दावा नहीं करते इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।