मुस्लिम परिवारों में संपत्ति के बंटवारे के लिए पर्सनल लॉ का पालन किया जाता है, लेकिन मंगलवार को इस कानून पर सुप्रीम कोर्ट में सवाल उठाए गए। एक महिला सफिया पीएम, जो खुद को एक्स-मुस्लिम बताती हैं, ने कहा कि अगर कोई मुसलमान सेकुलर प्रॉपर्टी लॉ का पालन करना चाहता है तो उसे ऐसा करने की अनुमति मिलनी चाहिए। इसके अलावा, उन्होंने शरिया कानून के तहत महिलाओं के संपत्ति अधिकारों में भेदभाव का भी आरोप लगाया। उनका कहना था कि शरिया कानून में महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले आधी संपत्ति ही मिलती है, जो उन्हें भेदभावपूर्ण लगता है। इसलिए, अगर कोई मुस्लिम महिला चाहती है, तो उसे सेकुलर प्रॉपर्टी लॉ के तहत संपत्ति के बंटवारे का अधिकार मिलना चाहिए। सफिया ने यह भी कहा कि भले ही उन्होंने मुस्लिम परिवार में जन्म लिया हो, लेकिन अब उन्होंने अपने धर्म को छोड़ दिया है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ, 1937 के अनुसार, महिला और पुरुष के बीच संपत्ति के बंटवारे में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। हालांकि, नियमों के अनुसार, जब कोई व्यक्ति मरता है, तो महिला को पुरुष के मुकाबले आधी संपत्ति मिलती है। उदाहरण के तौर पर, यदि एक परिवार में एक बेटा और एक बेटी हैं और पिता का निधन हो जाता है, तो बेटे को जितनी संपत्ति मिलेगी, उसकी आधी हिस्सेदारी बेटी को मिलेगी। इसी प्रकार, पति की मौत के बाद एक मुस्लिम महिला को उसकी संपत्ति का चौथाई हिस्सा मिलेगा, और यदि बच्चे हैं तो आठवां हिस्सा मिलेगा, बाकी संपत्ति बेटे और बेटियों में बांटी जाएगी। अगर महिला की मृत्यु होती है और उसके पास संपत्ति है, तो पति को आधी संपत्ति मिलेगी और बच्चों को एक चौथाई हिस्सा मिलेगा।
यह प्रावधान मुस्लिम महिलाओं के एक वर्ग को भेदभावपूर्ण लगता है। उनका कहना है कि शादी के बाद महिला को मेहर मिलता है और पति उसका तथा बच्चों का खर्च उठाता है, लेकिन बेटों के साथ ऐसी स्थिति नहीं होती, जिसके कारण संपत्ति के बंटवारे में उन्हें कम हिस्सा दिया जाता है। वहीं, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और सेकुलर लॉ में महिलाओं को संपत्ति में समान अधिकार दिए गए हैं। इसी कारण, सफिया पीएम ने सुप्रीम कोर्ट में सेकुलर प्रॉपर्टी लॉ के पालन की मांग की है। उनका यह भी कहना है कि वह चाहती हैं कि उनकी संपत्ति पूरी तरह से उनकी बेटी को मिलें, न कि बेटे को, क्योंकि बेटा परिवार की कोई परवाह नहीं करता, जबकि बेटी उनकी चिंता करती है।