
पश्चिम बंगाल की राजनीति एक बार फिर चर्चा में है, और इसकी वजह है राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता दिलीप घोष के बीच हालिया मुलाकात। इस अनौपचारिक बैठक के बाद से राजनीतिक गलियारों में अटकलें लगाई जा रही हैं कि दिलीप घोष पार्टी से नाराज चल रहे हैं और शायद भाजपा को अलविदा कह सकते हैं। खासतौर पर तब जब भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2024 में उनकी पुरानी सीट मेदिनीपुर की बजाय बर्धमान-दुर्गापुर से टिकट दिया, जहां उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा।
मंदिर दौरे और मुलाकात ने बढ़ाई चर्चाएं
बुधवार को दिलीप घोष ने अपनी पत्नी रिंकू मजूमदार के साथ दीघा स्थित नवनिर्मित जगन्नाथ मंदिर में दर्शन किए। इसी दौरान उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भी भेंट की। मंदिर उद्घाटन समारोह में राज्य के मंत्री अरूप विश्वास और टीएमसी नेता कुणाल घोष ने दिलीप घोष का स्वागत किया, जिससे इन चर्चाओं को और बल मिला कि शायद घोष पार्टी बदलने की तैयारी में हैं।
दिलीप घोष ने दी सफाई
हालांकि दिलीप घोष ने इन सभी कयासों को खारिज करते हुए कहा कि उन्होंने पार्टी नहीं बदली है और न ही ऐसी कोई मंशा रखते हैं। उन्होंने कहा कि वह सरकारी निमंत्रण पर मंदिर समारोह में गए थे और भाजपा ने भी किसी को वहां जाने से मना नहीं किया था। जब उनसे पूछा गया कि क्या वे टीएमसी में शामिल होंगे, तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा, “मैं क्यों शामिल होऊं? मेरा बुरा वक्त नहीं आया है। मैंने कभी पार्टी नहीं बदली और न ही ऐसा करने का इरादा है।”
भाजपा से नाराजगी की वजह
दिलीप घोष की नाराजगी की असली वजह 2024 के लोकसभा चुनाव में उनकी सीट बदला जाना माना जा रहा है। 2019 में मेदिनीपुर से जीतने के बाद इस बार उन्हें बर्धमान-दुर्गापुर सीट से चुनाव लड़ने को कहा गया, जहां वे टीएमसी के कीर्ति आजाद से करीब 1.38 लाख वोटों से हार गए। चुनाव हारने के बाद घोष ने खुलकर पार्टी नेतृत्व की आलोचना की और कहा कि जितने योग्य सीट छोड़कर कमजोर सीट पर भेजना एक बड़ी गलती थी।
हार के बाद तल्ख तेवर
चुनाव में हार के बाद दिलीप घोष ने अपनी उपेक्षा का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा कि पिछले चार वर्षों में उन्हें भाजपा के कई अहम कार्यक्रमों में शामिल नहीं किया गया। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के उस कथन का जिक्र भी किया, जिसमें कहा गया था कि पार्टी को अपने पुराने कार्यकर्ताओं को कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। घोष ने लिखा कि नए कार्यकर्ताओं पर जल्द भरोसा करना ठीक नहीं और पुराने कार्यकर्ता ही पार्टी की असली ताकत होते हैं।
दिलीप घोष का सफर
दिलीप घोष पश्चिम बंगाल भाजपा के एक प्रमुख चेहरे रहे हैं। उनका जन्म 1 अगस्त 1964 को मेदिनीपुर में हुआ था। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1984 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रचारक के रूप में की थी। 2014 में वे भाजपा से जुड़े और एक साल बाद ही राज्य इकाई के अध्यक्ष बने। 2016 में वे खड़गपुर सदर विधानसभा सीट से विधायक बने और 2019 में उन्होंने मेदिनीपुर से लोकसभा चुनाव जीता। हालांकि 2024 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
अब जब ममता बनर्जी से उनकी मुलाकात हुई है, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह सिर्फ एक औपचारिकता थी या इसके पीछे कोई बड़ी राजनीतिक रणनीति है।