प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए कहा कि भारत को सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक सिर्फ सीमा पर घुसपैठ ही नहीं बल्कि आबादी में बदलाव (Demographic Change) का खतरा भी है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि यह खतरा सामाजिक संतुलन और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों के लिए गंभीर परिणाम ला सकता है।
पीएम मोदी ने अपने संबोधन के दौरान आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि हेडगेवार मानते थे कि कोई भी राष्ट्र तभी सशक्त हो सकता है जब हर नागरिक राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझे और राष्ट्र के लिए जीने का संस्कार सीखे।
घुसपैठ और आबादी में बदलाव की चेतावनी: उन्होंने कहा कि सीमाओं पर घुसपैठ जितनी खतरनाक है, उतना ही खतरनाक है देश के भीतर धीरे-धीरे बदलता जनसांख्यिकीय संतुलन।
राष्ट्र प्रथम की भावना: हर नागरिक को अपने कर्तव्यों और राष्ट्रधर्म का पूरा पालन करना चाहिए।
संतुलित समाज का महत्व: मोदी ने कहा कि समाज में असंतुलन आने पर राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक पहचान दोनों पर संकट खड़ा हो सकता है।
युवाओं को संदेश: प्रधानमंत्री ने युवा पीढ़ी से आह्वान किया कि वे राष्ट्र के लिए त्याग और समर्पण की भावना जगाएं।
विशेषज्ञों का मानना है कि प्रधानमंत्री का यह बयान सिर्फ एक चेतावनी नहीं बल्कि आने वाले समय में राष्ट्रीय नीति और राजनीतिक एजेंडे की दिशा तय करने वाला संकेत भी है।
यह संदेश सत्तारूढ़ दल के राष्ट्रीय सुरक्षा और सांस्कृतिक पहचान पर केंद्रित नैरेटिव को और मजबूती देगा।
विपक्ष भी इसे चुनावी बयान मानकर प्रतिक्रिया दे सकता है, खासकर जब यह विषय जनसंख्या नियंत्रण और नागरिकता कानून जैसे मुद्दों से जुड़ता है।
हेडगेवार का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा कि राष्ट्र तभी ऊंचा उठता है जब हर नागरिक राष्ट्र को अपनी पहली प्राथमिकता मानता है। हेडगेवार का मानना था कि राष्ट्र की मजबूती केवल सेना या सत्ता से नहीं, बल्कि जनमानस के संस्कारों से आती है।
प्रधानमंत्री मोदी का यह बयान देशभर में नई बहस को जन्म दे सकता है। घुसपैठ और जनसांख्यिकी बदलाव जैसे विषय लंबे समय से संवेदनशील माने जाते रहे हैं। अब जब पीएम ने इस पर खुलकर चिंता जताई है, तो यह मुद्दा आने वाले समय में राजनीति, समाज और नीति-निर्माण तीनों पर गहरा असर डाल सकता है।

