सुप्रीम कोर्ट ने देश भर की विभिन्न अदालतों और बार एसोसिएशनों में महिला वकीलों को पेशेवर चैंबर या केबिन आवंटन में आरक्षण या वरीयता देने की मांग वाली याचिका पर बड़ा सवाल उठाया है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि ज्यूडिशियल सर्विसेज में करीब 60 प्रतिशत महिला अधिकारी बिना किसी आरक्षण के अपनी योग्यता के दम पर पदों पर पहुंची हैं। ऐसे में, चैंबर आवंटन में कोई विशेष आरक्षण या वरीयता देना विरोधाभासी लगता है।
याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट सोनिया माथुर ने बताया कि सिर्फ दिल्ली के रोहिणी कोर्ट में ही महिलाओं के लिए चैंबर आवंटन में 10 प्रतिशत आरक्षण है। जबकि अन्य अदालतों में इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है, जिससे महिला वकीलों को बैठाने और काम करने के लिए उचित जगह नहीं मिल पाती। उन्होंने यह भी कहा कि कई बार महिला वकीलों को कोर्ट परिसर के बाहर पेड़ के नीचे बैठकर अपने मुवक्किलों से मिलना पड़ता है, जो उनकी पेशेवर गरिमा के खिलाफ है।
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि वे व्यक्तिगत तौर पर चैंबर प्रणाली के खिलाफ हैं और उनकी जगह क्यूबिकल सिस्टम या सामान्य बैठने की जगह बेहतर होगी, जहां सभी वकील समान रूप से काम कर सकें। उन्होंने आगे सुझाव दिया कि महिला वकीलों के लिए क्रेच, अलग वाशरूम जैसी सुविधाएं बढ़ाई जाएं क्योंकि पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण कई युवा महिला पेशेवर अपने करियर छोड़ने पर मजबूर होती हैं।
पीठ ने केंद्र सरकार, सुप्रीम कोर्ट के महासचिव, बार काउंसिल ऑफ इंडिया और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन को नोटिस जारी करते हुए समान और लैंगिक रूप से संवेदनशील नीति बनाने के लिए कहा है।
विशेषज्ञ कहते हैं कि महिलाओं की बढ़ती संख्या के बीच भी पेशेवर जगहों की कमी चिंता का विषय है, लेकिन आरक्षण के बजाय आधारभूत ढांचागत सुधार और समान अवसरों की व्यवस्था ज्यादा उचित होगी।

