
सूरत की सेशन कोर्ट ने दिगंबर जैन मुनि शांतिसागर महाराज को 19 वर्षीय श्राविका के साथ दुष्कर्म के मामले में दोषी करार देते हुए 10 साल की कठोर सजा सुनाई है। कोर्ट ने शुक्रवार को उन्हें दोषी ठहराया था और आज यानी शनिवार को सजा का ऐलान किया गया।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला वर्ष 2017 का है, जब मध्यप्रदेश की रहने वाली एक 19 वर्षीय युवती, जो एक जैन श्राविका थी, अपने परिवार के साथ सूरत के नानपुर स्थित उपाश्रय में शांतिसागर मुनि से मिलने आई थी। परिवार का मुनि शांतिसागर पर गहरा विश्वास था और उसे अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे।
उसी रात करीब साढ़े 9 बजे शांतिसागर ने पूजा विधि का बहाना बनाकर युवती को अपने कक्ष में बुलाया और परिवार के अन्य सदस्यों को बाहर ही रुकने को कहा। इसी दौरान उसने युवती को डरा-धमकाकर उसके साथ बलात्कार किया।
शुरुआत में परिवार समाज में बदनामी के डर से चुप रहा, लेकिन बाद में उन्होंने सोचा कि अन्य लड़कियों के साथ ऐसा न हो, इसलिए घटना के 13 दिन बाद सूरत के अथवालाइंस थाने में शिकायत दर्ज करवाई। शिकायत के बाद पुलिस ने शांतिसागर को गिरफ्तार कर लिया था और तब से वह न्यायिक हिरासत में था।
पीड़िता से मांगी थी अश्लील तस्वीर
पीड़िता ने अपनी शिकायत में यह भी बताया कि घटना से कुछ दिन पहले मुनि ने उसे व्हाट्सएप पर नग्न तस्वीर भेजने को कहा था, यह कहकर कि पूजा के लिए ऐसी तस्वीर की आवश्यकता होती है।
अदालत की कार्रवाई और फैसला
सरकारी वकील नयन सुखड़वाला के अनुसार, अभियोजन पक्ष ने 33 गवाहों को कोर्ट में पेश किया और मेडिकल व फॉरेंसिक रिपोर्ट सहित ठोस साक्ष्यों के आधार पर आरोप साबित किए। इसके बाद कोर्ट ने आरोपी को 10 साल की सजा और 25 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई।
गुरु-शिष्य के रिश्ते को किया शर्मसार
जिस गुरु को पीड़िता ईश्वर समान मानती थी, उसी ने विश्वासघात कर उसे मानसिक और शारीरिक रूप से तोड़ दिया। समाज में गुरु का स्थान माता-पिता से भी ऊंचा माना जाता है, लेकिन शांतिसागर जैसे पाखंडी ने न सिर्फ अपने पद को कलंकित किया, बल्कि गुरु-शिष्य के पवित्र रिश्ते को भी बदनाम किया।