आज ही के दिन, 19 मई 1910 को नाथूराम विनायक गोडसे का जन्म महाराष्ट्र के बारामती कस्बे में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता ने अपने पहले तीन बेटों को कम उम्र में खो दिया था। यह मानते हुए कि किसी श्राप या दुर्भाग्य के कारण ऐसा हो रहा है, उन्होंने अपने चौथे बेटे को लड़की की तरह पाला, उसकी नाक में नथ पहनाई, और उसे ‘नाथमल’ नाम दिया गया। बाद में जब परिवार में एक और बेटा हुआ, तब उसका नाम बदलकर नाथूराम रखा गया।
नाथूराम गोडसे का झुकाव शुरू से ही कट्टर राष्ट्रवादी विचारधारा की ओर था। उनका मानना था कि गांधीजी के फैसले हिंदू समाज के खिलाफ हैं। इसी सोच के चलते 30 जनवरी 1948 को उन्होंने नई दिल्ली के बिड़ला भवन में महात्मा गांधी को तीन गोलियां मारकर उनकी हत्या कर दी।
हत्या से 10 दिन पहले भी हुई थी कोशिश
दरअसल, 20 जनवरी 1948 को भी गांधीजी की हत्या का प्रयास किया गया था, जो असफल रहा। इस साजिश के पीछे भी गोडसे और उसके साथी शामिल थे।
इस योजना के तहत:
- मदनलाल पाहवा को एक बम विस्फोट करना था ताकि भगदड़ मचे और इसी अफरातफरी में गांधीजी को गोली मारी जा सके।
- लेकिन पाहवा घबरा गया और उसने बम गांधीजी से काफी दूरी पर और समय से पहले फेंक दिया, जिससे पूरी योजना बिगड़ गई।
- दिगंबर बडगे, जिसे गोली चलानी थी, भगदड़ और हंगामे के कारण डर गया और उसने गोली नहीं चलाई।
- पाहवा को घटनास्थल पर ही पकड़ लिया गया और पूछताछ में उसने पूरी साजिश का खुलासा कर दिया, जिसमें गोडसे और अन्य शामिल थे।
हालांकि पाहवा की जानकारी के बावजूद दिल्ली पुलिस कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पाई। नाथूराम गोडसे और उसके साथियों को पहले ही गिरफ्तार किया जा सकता था, लेकिन पुलिस की लापरवाही के कारण ऐसा नहीं हो सका। बाद में अदालत ने इस पर सख्त टिप्पणी की और जांच एजेंसियों की भूमिका पर सवाल उठाए।
गांधीजी को था अपने अंत का आभास
20 जनवरी की असफल कोशिश के बाद गांधीजी को मानो अपने अंत का पूर्वाभास हो गया था। अगले दस दिनों में उन्होंने कम से कम 14 बार अपने भाषणों और लेखों में मौत की बात की।
21 जनवरी को उन्होंने कहा था:
“अगर कोई मुझे नजदीक से गोली मारे और मैं राम नाम लेते हुए मुस्कुरा कर मृत्यु को गले लगाऊं, तो मैं इसे अपनी सफलता मानूंगा।”

