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संविधान से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटाने की RSS मांग पर कांग्रेस का हमला, बोली – ये लोकतंत्र पर सीधा हमला है

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के वरिष्ठ पदाधिकारी दत्तात्रेय होसबोले द्वारा संविधान की प्रस्तावना से “समाजवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” शब्दों को हटाने की बात कहने पर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस ने इसे भाजपा और आरएसएस की सुनियोजित साजिश बताते हुए कहा कि उनका असली इरादा संविधान को कमजोर करना और लोकतंत्र की आत्मा को खत्म करना है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर कहा, “RSS कभी भी भारत के संविधान को स्वीकार नहीं कर पाया। 1949 के बाद से ही संघ के विचारक और नेता डॉ. आंबेडकर, पंडित नेहरू और संविधान सभा के अन्य सदस्यों को लगातार अपमानित करते आए हैं।” उन्होंने आरोप लगाया कि आरएसएस हमेशा मनुस्मृति जैसे ग्रंथों को संविधान से ऊपर रखने की कोशिश करता रहा है गुरुवार को एक कार्यक्रम में दत्तात्रेय होसबोले ने कहा था कि “समाजवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” शब्द भारत के संविधान की मूल प्रस्तावना का हिस्सा नहीं थे और इन्हें इमरजेंसी के दौरान 1976 में जोड़ा गया था। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या इन विचारधाराओं को हमेशा के लिए प्रस्तावना में रहना चाहिए? क्या यह भारत के लिए शाश्वत मूल्य हैं? जयराम रमेश ने कहा, “2024 लोकसभा चुनाव में मोदी जी और बीजेपी ने नए संविधान की बात कही थी, लेकिन जनता ने इस विचार को पूरी तरह नकार दिया। अब जब चुनाव में हार मिली तो संविधान को तोड़ने-मरोड़ने की कोशिशें फिर से शुरू हो गई हैं।” कांग्रेस ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि न्यायपालिका भी यह स्पष्ट कर चुकी है कि प्रस्तावना का मूल ढांचा नहीं बदला जा सकता। जयराम रमेश ने 25 नवंबर 2024 के एक फैसले की प्रति भी साझा करते हुए कहा कि “जब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दे दिया, तो अब यह मुद्दा फिर क्यों उठाया जा रहा है?” RSS की यह टिप्पणी इमरजेंसी के संदर्भ में दी गई थी, जहां होसबोले ने कहा कि आपातकाल के दौरान जब लोकतंत्र ठप पड़ा था, तब इन दो शब्दों को जोड़कर संविधान के मूल स्वरूप में बदलाव किया गया। हालांकि, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का कहना है कि इस बहस के पीछे राजनीतिक मंशा छिपी है – भारत के संविधान को फिर से लिखने की। RSS और भाजपा की तरफ से बार-बार संविधान की प्रस्तावना या ढांचे में बदलाव की बात विपक्ष को लगातार सतर्क कर रही है। कांग्रेस का कहना है कि यह सिर्फ दो शब्दों को हटाने की बात नहीं है, बल्कि इससे उस लोकतांत्रिक और समावेशी भारत की नींव पर चोट पहुंचती है, जिसकी कल्पना संविधान निर्माताओं ने की थी।

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