योगी सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश का पालन करते हुए बड़ा कदम उठाया है। अब नाम में जाति का उल्लेख, एफआईआर, गिरफ्तारी मेमो, पुलिस रिकॉर्ड और अन्य दस्तावेजों में जाति नहीं लिखी जाएगी। इस फैसले को लागू करने के लिए मुख्य सचिव दीपक कुमार ने आदेश जारी किए हैं। इसके तहत अब पहचान के लिए पिता/पति के नाम के साथ माता का नाम भी शामिल किया जाएगा। साथ ही थानों के नोटिस बोर्ड, निजी और सार्वजनिक वाहनों तथा साइनबोर्ड्स से जातीय संकेत और नारे हटाने के निर्देश दिए गए हैं। राजनीतिक मकसद से होने वाली जाति आधारित रैलियों पर पूरी तरह प्रतिबंध रहेगा और सोशल मीडिया पर भी कड़ी निगरानी रखी जाएगी ताकि जातिगत भावनाएं भड़काने वाली गतिविधियों पर लगाम लग सके।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि केंद्रीय मोटर वाहन नियमों में संशोधन कर सभी निजी और सार्वजनिक वाहनों पर जाति आधारित स्लोगन और स्टिकर को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जाए। साथ ही ऐसे चिह्न न हटाने वालों पर जुर्माना लगाने के निर्देश भी दिए गए। हालांकि, एससी/एसटी एक्ट जैसे मामलों में जाति का उल्लेख करने की छूट रहेगी। इसके लिए एसओपी और पुलिस मैनुअल में बदलाव किया जाएगा।
इस फैसले पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इसे सतही कदम करार दिया और सरकार की मंशा पर सवाल उठाए। अखिलेश यादव ने अपने पोस्ट में पांच प्रमुख सवाल रखे। उन्होंने पूछा कि 5000 सालों से मन में बसे जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए क्या किया जाएगा? वेशभूषा और प्रतीक चिन्हों से जाति प्रदर्शन को खत्म करने के लिए क्या कदम होंगे? किसी से मिलने पर नाम से पहले जाति पूछने की मानसिकता को कैसे बदला जाएगा? किसी का घर धुलवाने जैसी सोच और झूठे आरोपों से बदनाम करने की साजिशों को रोकने के लिए क्या योजना है?
अखिलेश यादव का कहना है कि केवल दस्तावेजों और बोर्डों से जाति हटाने से समाज में गहरी जड़ें जमा चुकी मानसिकता खत्म नहीं होगी। उनका यह पोस्ट सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है और योगी सरकार के फैसले को लेकर नई राजनीतिक बहस छेड़ दी है।

