बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले सियासी घमासान तेज हो चुका है और इस बार मुकाबला सीधे जनता को मिलने वाले फायदे पर टिक गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महिला वोटबैंक को साधने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है, जिसका शुभारंभ खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करने जा रहे हैं। मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत राज्य की 75 लाख से अधिक महिलाओं को चरणबद्ध तरीके से 2-2 लाख रुपये की आर्थिक मदद दी जाएगी। 25 सितंबर को इस योजना की शुरुआत होगी, जब प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश 10-10 हज़ार रुपये की पहली किस्त सीधे महिलाओं के बैंक खातों में भेजेंगे। सरकार का अनुमान है कि इस पहले चरण पर ही लगभग 7,500 करोड़ रुपये का खर्च आएगा।
नीतीश कुमार का कहना है कि यह भत्ता नहीं, बल्कि महिलाओं को रोजगार और कारोबार से जोड़ने की योजना है। उनका तर्क है कि मासिक भत्ता देने से निर्भरता बढ़ती है जबकि आर्थिक सहायता और अवसर देने से महिलाएं आत्मनिर्भर बनती हैं। यही वजह है कि उन्होंने इसे आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की महिला केंद्रित घोषणा का जवाब बताया है।
योजना को लेकर राज्य भर में जबरदस्त उत्साह देखने को मिल रहा है। अब तक 1.4 करोड़ से ज्यादा महिलाएं आवेदन कर चुकी हैं और सरकार को उम्मीद है कि यह संख्या 2 करोड़ के पार जाएगी। आवेदन प्रक्रिया जीविका स्वयं सहायता समूहों (SHGs) और ऑनलाइन केंद्रों के माध्यम से हो रही है। फिलहाल 10 लाख से अधिक SHGs सक्रिय हैं और ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक ताकत देने का अहम जरिया बन चुके हैं। गांवों में यह योजना ‘दशजरीया’ नाम से मशहूर हो चुकी है। खास बात यह है कि महिलाओं को इस पैसे को लौटाने की कोई बाध्यता नहीं होगी।
नीतीश कुमार के लिए महिला सशक्तिकरण का कार्ड नया नहीं है। वे पहले ही पंचायत चुनावों में महिलाओं को 50% आरक्षण, सरकारी नौकरियों में 35% आरक्षण, लड़कियों की साइकिल योजना और आंगनवाड़ी व आशा कार्यकर्ताओं के मानदेय में बढ़ोतरी जैसे कदम उठा चुके हैं। इन फैसलों ने उन्हें महिला वोटरों के बीच खास पहचान दिलाई और बिहार की राजनीति में ‘महिला मसीहा’ की छवि बनाई। 2010 और 2015 के चुनाव में महिलाओं ने बड़ी संख्या में नीतीश को समर्थन दिया और शराबबंदी जैसे फैसलों से उनकी पकड़ और मज़बूत हुई।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह नई योजना सीधे-सीधे तेजस्वी यादव की रणनीति को चुनौती देने के लिए है। जहां तेजस्वी महिलाओं को नकद भत्ता देकर जोड़ना चाहते हैं, वहीं नीतीश उन्हें रोजगार और कारोबार के अवसरों से आत्मनिर्भर बनाने का दावा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी से यह कदम बीजेपी और जेडीयू गठबंधन की संयुक्त चुनावी रणनीति के रूप में भी देखा जा रहा है। पटना यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्री अश्विनी कुमार कहते हैं कि भारत अब मातृसुलभ कल्याणकारी राज्य की ओर बढ़ रहा है और महिलाएं राजनीति की धुरी बन चुकी हैं।
आखिरकार, नीतीश कुमार का यह महिला मास्टरस्ट्रोक कितना असर दिखाएगा, यह तो आने वाले चुनाव नतीजे ही बताएंगे। लेकिन इतना तय है कि बिहार की राजनीति में महिलाएं अब केवल दर्शक नहीं रहीं, बल्कि निर्णायक ताक़त बन चुकी हैं। इस बार चुनावी रणभूमि में उनका वोट ही सत्ता की चाबी तय करेगा।

