बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में बीजेपी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और कद्दावर नेता आरके सिंह को मेनिफेस्टो और कंपेन कमेटी से बाहर रखा है। यह कदम पार्टी के लिए एक बड़ा संकेत है कि आरके सिंह को साइडलाइन किया जा चुका है। हालांकि आरके सिंह ने पार्टी छोड़ने की लगातार चल रही अफवाहों को सिरे से खारिज किया है और कहा है कि वह पार्टी में रहेंगे। मगर उनका बागी और बगावती तेवर बीजेपी के लिए चिंता का विषय बन गया है, खासकर डेहरी-ऑन-सोन जैसे संवेदनशील इलाकों में जहां उनका प्रभाव मजबूत रहा है।
बीजेपी अपने राजपूत वोटों को साधने के लिए नई रणनीतियों पर काम कर रही है। आरके सिंह की छवि राजपूत समुदाय में मज़बूत मानी जाती है, लेकिन पार्टी की इस साइडलाइनिंग से राजपूत वोट बैंक पर असमंजस की स्थिति पैदा हुई है। आरके सिंह ने हाल ही में राजपूत समुदाय को सम्बोधित करते हुए उनसे एकजुटता की अपील की थी और अपनी पार्टी बनाने तक के संकेत भी दिए। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर आरके सिंह अपना अलग राजनीतिक रास्ता चुनते हैं, तो यह राजपूत वोटों में दरार का कारण बन सकता है जिससे बीजेपी को नुकसान होगा।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार के कई दौरे किए हैं और बीजेपी के अंदर चल रही कलह को शांत करने की कोशिश की है। लेकिन आरके सिंह की बगावत से पार्टी को बड़ा झटका लग सकता है। डेहरी-ऑन-सोन जैसे इलाकों में पिछली हारों को देखते हुए, बीजेपी को अब ज्यादा सतर्क होने की जरूरत है कि कहीं यह साइडलाइनिंग और बागी तेवर उनका नुकसान न कर दें।
आरके सिंह ने इन खबरों को खारिज किया है कि वे कहीं जा रहे हैं या नई पार्टी बनाएंगे, लेकिन उन्होंने राजपूत समुदाय से कहा है कि वे इस दिशा में सोच-विचार करें। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज हो गई है कि अगर आरके सिंह कहीं अलग राजनीति करते हैं तो बिहार की राजनीति में भूचाल आ सकता है। हालांकि, नए फंड और संगठन के अभाव में उनकी नई पार्टी बनाने की संभावनाएं अभी सीमित मानी जा रही हैं।

