बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले सियासत का पारा चढ़ गया है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बड़ा ऐलान किया है। उन्होंने कहा है कि अगर उनकी सरकार बनी तो हर घर में एक सरकारी नौकरी दी जाएगी। तेजस्वी ने कहा, “हमने पहले 10 लाख नौकरी देने का वादा किया था और 17 महीने की सरकार में डेढ़ लाख नौकरियां दीं। जो कहा था, वो करके दिखाया। भाजपा ने 20 साल में कोई नौकरी नहीं दी, लेकिन हम 20 दिन में आयोग बनाकर कानून लाएंगे।”
तेजस्वी यादव का यह बयान युवाओं के बीच जोश पैदा कर रहा है, लेकिन इसके साथ ही कई गंभीर सवाल भी उठ रहे हैं। बिहार की कुल आबादी करीब 13.7 करोड़ है और यहां लगभग 2.83 करोड़ परिवार हैं। इनमें से करीब 20 लाख लोग पहले से ही सरकारी नौकरी में हैं। इसका मतलब है कि अगर हर परिवार को एक सरकारी नौकरी देनी है तो लगभग 2 करोड़ 63 लाख नई नौकरियां पैदा करनी होंगी। यह आंकड़ा इतना बड़ा है कि इसे पूरा करने के लिए राज्य को अपनी पूरी आर्थिक संरचना बदलनी पड़ेगी।
विशेषज्ञों का कहना है कि बिहार जैसे राज्य में, जहां कुल बजट लगभग 2.7 लाख करोड़ रुपये है, इतनी बड़ी संख्या में सरकारी नौकरियां देना व्यावहारिक रूप से मुश्किल है। लेकिन आरजेडी समर्थक मानते हैं कि अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति और नई योजना बने तो रोजगार सृजन के लिए मॉडल तैयार किए जा सकते हैं — जैसे सरकारी ठेकों, ग्रामीण विकास योजनाओं और स्थानीय उद्योगों में प्रत्यक्ष नियुक्ति।
बिहार का मध्यमवर्ग हमेशा से सरकारी नौकरी को सुरक्षा और सम्मान का प्रतीक मानता है। हर परिवार का सपना होता है कि उसका कोई सदस्य सरकारी नौकरी पाए। तेजस्वी यादव का यह वादा उसी भावना को छूता है। कई युवा इसे नई उम्मीद के रूप में देख रहे हैं, जबकि विरोधी दल इसे चुनावी जुमला कह रहे हैं।
भाजपा और जेडीयू नेताओं ने तेजस्वी के वादे को अव्यवहारिक बताते हुए कहा है कि बिहार की जनता को सपनों में नहीं, सच्चाई में जीना चाहिए। वहीं आरजेडी नेताओं का कहना है कि तेजस्वी जो कहते हैं, वो करके दिखाते हैं। उन्होंने पहले भी रोजगार दिए हैं और अब भी देंगे।
तेजस्वी यादव का “हर घर नौकरी” वाला वादा अब बिहार चुनाव 2025 का सबसे चर्चित मुद्दा बन चुका है। यह घोषणा युवाओं के मन में उम्मीद जगाती है, पर साथ ही राज्य की आर्थिक हकीकत से जुड़े सवाल भी छोड़ जाती है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार की जनता इस वादे को रोजगार का नया अवसर मानती है या इसे सपनों की राजनीति का एक और उदाहरण समझती है।

