लखनऊ – इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने कहा है अगर पति की नौकरी से कोई आय नहीं है तो भी वह अपनी पत्नी को भरण-पोषण प्रदान करने के लिए बाध्य है क्योंकि वह एक अकुशल मजदूर के रूप में प्रतिदिन लगभग 300-400 रुपये कमा सकता है. उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ की न्यायमूर्ति रेनू अग्रवाल ने पारिवारिक अदालत के उस आदेश के खिलाफ व्यक्ति की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें उसे अपनी अलग रह रही पत्नी को भरण-पोषण के रूप में 2,000 रुपये मासिक देने को कहा गया था.
न्यायमूर्ति अग्रवाल ने निचली अदालत के न्यायाधीश को पत्नी के पक्ष में पहले से दिए गए गुजारा भत्ते के आदेश के तहत वसूली के लिए पति के खिलाफ सभी उपाय अपनाने का निर्देश दिया. पति ने परिवार अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय के समक्ष पुनरीक्षण याचिका दायर की थी, जिसमें उसने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के प्रावधानों के तहत, पत्नी को 2000 रुपये का गुजारा भत्ता देने के आदेश को चुनौती दी थी.
इस मामले में पति ने अपनी याचिका में दलील दी कि परिवार अदालत इस बात पर विचार करने में विफल रही कि पत्नी स्नातक है और शिक्षण पेशे से प्रति माह 10000 रुपए कमा रही है. याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि वह गंभीर रूप से बीमार है और डॉक्टर से इलाज करा रहा है. उसने यह भी दलील दी कि वह मजदूरी करता है और किराए के कमरे में रहता है और उसे अपने माता-पिता और बहनों की देखभाल करनी है.

