नीरज पांडे ने ‘खाकी: द बिहार चैप्टर’ के बाद अब ‘खाकी: द बंगाल चैप्टर’ से धमाकेदार वापसी की है। यह सीरीज 20 मार्च को नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई और ट्रेलर रिलीज होने के बाद से ही चर्चा का विषय बनी हुई है। सीरीज की कहानी ने दर्शकों की उम्मीदों पर खरा उतरा है। नीरज पांडे की फिल्मों से हमेशा धमाकेदार डायलॉग्स और शानदार एक्शन सीन्स की उम्मीद की जाती है, और इस बार भी उन्होंने निर्माता के तौर पर कमाल किया है। हालांकि, उनकी पिछली दो रिलीज ‘औरों में दम था’ और ‘सिकंदर का मुकद्दर’ दर्शकों को ज्यादा पसंद नहीं आई थीं, लेकिन एक अच्छा फिल्ममेकर वही होता है जो हमेशा कुछ नया और बेहतर करने की कोशिश करता है। ‘खाकी: द बंगाल चैप्टर’ में भी उन्होंने यही कोशिश की है।
सीरीज की कहानी बाघा दा (शाश्वत चटर्जी) से शुरू होती है, जो राजगद्दी पर अपना दावा करता है। इसके बाद दर्शकों को आईपीएस अधिकारी सप्तर्षि (परमब्रत चट्टोपाध्याय) से मिलवाया जाता है, जो बंगाल से अपराध को खत्म करने के लिए दृढ़ संकल्पित है। हालांकि, उनकी असमय मौत से शहर को झटका लगता है। इसके बाद कहानी में एक नया पुलिस अधिकारी अर्जुन मैत्रा (जीत) आता है, जो अपने सीधे-सादे और साहसी तरीकों से अपराध से लड़ता है। उसकी मुलाकात बंगाल के एक चालाक राजनेता बरुन दास (प्रोसेनजीत चटर्जी) से होती है, जो अपराधियों का इस्तेमाल करके अपनी राजनीति चलाता है। इसके अलावा, ऋत्विक भौमिक (गणनात्मक सागर तालुकदार) और आदिल खान (रंजीत ठाकुर) के किरदार भी कहानी को रोमांचक बनाते हैं।
निर्देशन और लेखन
‘खाकी: द बंगाल चैप्टर’ का निर्देशन देबात्मा मंडल और तुषार कांति रे ने किया है, जबकि नीरज पांडे, देबात्मा और सम्राट चक्रवर्ती ने इसकी पटकथा लिखी है। सीरीज का प्लॉट थोड़ा प्रेडिक्टेबल है, लेकिन निर्देशन, सिनेमैटोग्राफी और कास्टिंग ने इसे खास बना दिया है। हर किरदार को कहानी के अनुसार बखूबी पेश किया गया है। हालांकि, कुछ जगहों पर कहानी थोड़ी धीमी लगती है और कुछ सीन्स बिना मतलब के लगते हैं, लेकिन कलाकारों की शानदार परफॉर्मेंस और दमदार स्टोरी आपको अंत तक बांधे रखती है। क्लाइमेक्स थोड़ा फीका लग सकता है, लेकिन संगीत और बैकग्राउंड स्कोर ने इसे संजीवनी दी है। जीत गांगुली का टाइटल ट्रैक ‘अइयेना हमरा बिहार में’ और ‘एक और रंग भी देखिए बंगाल का’ काफी मजेदार है।
कास्ट की परफॉर्मेंस
सीरीज की सबसे बड़ी ताकत इसके कलाकार हैं। जीत ने हिंदी सीरीज में डेब्यू करते हुए शानदार अभिनय किया है। उनका किरदार ‘सिंघम’ और ‘दबंग’ जैसी फिल्मों के धमाकेदार पुलिस ऑफिसर्स से अलग है, और वे इसे ताजगी भरे अंदाज में पेश करते हैं। उनका अभिनय ‘गंगाजल’ के अजय देवगन की याद दिलाता है। प्रोसेनजीत चटर्जी ने एक भ्रष्ट राजनेता की भूमिका में कमाल किया है। ऋत्विक भौमिक और आदिल खान ने भी अपने-अपने किरदारों को बखूबी निभाया है। शाश्वत चटर्जी और परमब्रत चट्टोपाध्याय ने कम स्क्रीन स्पेस में भी अपनी छाप छोड़ी है।
सीरीज कैसी है?
‘खाकी: द बंगाल चैप्टर’ देखने लायक है, हालांकि इसकी कहानी में कुछ खास नयापन नहीं है। राजनीति और अपराध का मिश्रण हमने पहले भी कई बार देखा है। लेकिन बंगाली भाषा और संस्कृति का प्रभाव इसे थोड़ा अलग बनाता है। एक्शन सीन्स अच्छे हैं, लेकिन स्लो-मो सीक्वेंस कभी-कभी परेशान कर सकते हैं। सीरीज की कहानी और ट्विस्ट आपको अंत तक बांधे रखते हैं। कुल मिलाकर, ‘खाकी: द बंगाल चैप्टर’ 5 में से 3 स्टार की हकदार है और इसे नेटफ्लिक्स पर देखा जा सकता है।

