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अंग्रेजों के खिलाफ लड़ा वो असली नायक कौन, जिसे ‘केसरी चैप्टर 2’ में अक्षय कुमार निभा रहे हैं?

अक्षय कुमार, आर. माधवन और अनन्या पांडे जल्द ही अपनी आने वाली फिल्म केसरी चैप्टर 2: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ जलियांवाला बाग में एक साथ नजर आएंगे। यह फिल्म एक सच्ची घटना पर आधारित है और हाल ही में इसका टीजर रिलीज हुआ, जिसमें एक प्रभावशाली वकील की झलक देखने को मिली। इस किरदार को अक्षय कुमार निभा रहे हैं, जो एक ब्रिटिश जज को कोर्टरूम में बेबाक अंदाज में लताड़ते नजर आते हैं। टीजर देखने के बाद दर्शकों के मन में यह सवाल जरूर उठ रहा है कि आखिर यह साहसी वकील कौन था?

दरअसल, अक्षय कुमार इस फिल्म में सर चेट्टूर शंकरन नायर की भूमिका निभा रहे हैं। वे एक निडर और जुझारू वकील थे, जिन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद ब्रिटिश हुकूमत को खुली चुनौती दी थी। यह फिल्म उनकी ऐतिहासिक लड़ाई और उस सच्चाई को उजागर करने पर आधारित है, जिसे अंग्रेज छिपाना चाहते थे।

सर चेट्टूर शंकरन नायर का जीवन परिचय

सर चेट्टूर शंकरन नायर का जन्म 11 जुलाई 1857 को केरल के पालघाट जिले में हुआ था। उच्च शिक्षा के लिए वे मद्रास (अब चेन्नई) गए और वहाँ से कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद एक प्रसिद्ध वकील बने। उनकी प्रतिभा के कारण उन्हें मद्रास के एडवोकेट-जनरल के रूप में नियुक्त किया गया और 1908 में वे मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने। इसके बाद 1915 से 1919 तक उन्होंने वायसराय की कार्यकारी परिषद में शिक्षा मंत्री के रूप में कार्य किया।

नायर सिर्फ एक कुशल वकील ही नहीं, बल्कि समाज सुधारक भी थे। उन्होंने लैंगिक समानता, जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ी और बाल विवाह उन्मूलन व निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा का समर्थन किया। उनकी ईमानदारी और निर्भीकता के चलते अंग्रेज भी उनका सम्मान करते थे और 1912 में उन्हें ‘नाइट’ की उपाधि प्रदान की गई। हालांकि, वे हमेशा भारतीय राष्ट्रवाद के समर्थन में खड़े रहे और अपने विचारों को खुलकर व्यक्त करने से कभी नहीं डरे।

अंग्रेजों से मिली उपाधि छोड़कर दिया इस्तीफा

सर शंकरन नायर वायसराय की कार्यकारी परिषद में एक उच्च पद पर थे, लेकिन जब जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद ब्रिटिश सरकार ने अपनी क्रूरता को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, तो उन्होंने विरोधस्वरूप 1919 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उनके इस कदम ने ब्रिटिश सरकार को झकझोर कर रख दिया और पंजाब में लगे मार्शल लॉ को खत्म करने और प्रेस सेंसरशिप हटाने में मदद की।

अपनी पुस्तक गांधी एंड एनार्की में उन्होंने ब्रिटिश अधिकारी माइकल ओ’डायर की नीतियों और अहंकार की कड़ी आलोचना की। उन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड के अपराधियों को बेनकाब करने का संकल्प लिया और पंजाब नरसंहार की सच्चाई दुनिया के सामने लाने में अहम भूमिका निभाई। उनका यह साहसिक कदम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।

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