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नौकरानी से बनी अभिनेत्री ने छोड़ा परिवार, लौटने पर मिली तंगहाली, आश्रम में बीती रात

बॉलीवुड की दुनिया में जितनी चमक हीरो की होती है, उतनी ही खास जगह खलनायकों की भी रही है। अमजद खान, अमरीश पुरी और पुनीत इस्सर जैसे नाम हमेशा याद रखे जाते हैं, लेकिन इन पुरुष खलनायकों के बीच कुछ महिला कलाकारों ने भी अपनी खलनायकी से सबको चौंका दिया। उन्हीं में से एक नाम है शशिकला सहगल का, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में एक लंबा सफर तय किया और अपनी अदाकारी से दर्शकों के दिलों पर राज किया।

शशिकला सहगल ने अपने करियर में कई हिट फिल्मों में अभिनय किया और दर्शकों की तारीफ बटोरी। लेकिन उनकी यह चमकदार यात्रा उतनी आसान नहीं थी। निजी जिंदगी में उन्होंने कई संघर्ष झेले। महज 19 साल की उम्र में उन्होंने ओपी सहगल से शादी कर ली थी, लेकिन शादी के बाद जीवन में मुश्किलों का दौर शुरू हो गया। उनके पति का कारोबार ठप पड़ने लगा और शशिकला को भी पर्याप्त काम नहीं मिल रहा था। घर की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई, तब उन्होंने दिन-रात मेहनत कर दोहरी शिफ्टों में काम करना शुरू किया। उस दौर में फिल्म ‘जीनत’ के लिए उन्हें सिर्फ 25 रुपये की फीस मिली थी।

इन कठिन परिस्थितियों के बीच उनका पारिवारिक जीवन भी डगमगाने लगा। पति से रिश्ते बिगड़ गए और उन्होंने बच्चों और पति को पीछे छोड़ विदेश का रुख किया, जिसे उन्होंने अपनी सबसे बड़ी गलती माना। जब वे भारत लौटीं, तो उन्हें काम के लिए संघर्ष करना पड़ा। आर्थिक तंगी ने उन्हें इस कदर जकड़ लिया कि उन्हें रहने के लिए मंदिरों और आश्रमों का सहारा लेना पड़ा।

हालांकि, फिल्मों से दूरी बनने के बाद उन्होंने टीवी की दुनिया में कदम रखा और ‘सोनपरी’ में फ्रूटी की दादी बनकर फिर से लोगों के दिलों में जगह बना ली। उनकी कला को सराहते हुए भारत सरकार ने 2007 में उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा।

शशिकला ने ‘गुमराह’, ‘हरियाली और रास्ता’, ‘नौ दो ग्यारह’, ‘फूल और पत्थर’, ‘हिमालय की गोद में’, ‘सरगम’, ‘दुल्हन वही जो पिया मन भाए’, ‘नीलकमल’, ‘पैसा या प्यार’, ‘छोटी सी मुलाकात’, ‘घर घर की कहानी’, ‘कभी खुशी कभी ग़म’ जैसी दर्जनों फिल्मों में अपनी छाप छोड़ी।

उनका निधन 4 अप्रैल 2021 को हुआ। 1950 से 1970 के दशक तक वे बॉलीवुड में एक पहचान बन चुकी थीं, और बाद के वर्षों में भी ‘मुझसे शादी करोगी’ जैसी फिल्मों में वे नजर आईं। उनका जीवन संघर्ष, समर्पण और अदाकारी की मिसाल है।

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