सर्वोच्च न्यायालय ने 1 सितंबर 2025 को SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बीआर गवई की पीठ ने स्पष्ट किया है कि इस अधिनियम की धारा 18 के तहत अग्रिम जमानत पर पूर्ण प्रतिबंध है, लेकिन एक बड़ा अपवाद है।
न्यायालय ने कहा है कि यदि FIR में प्राइमाफेशिए तौर पर कोई मामला प्रमाणित नहीं होता और शिकायत के आरोप निराधार हैं, तो संबंधित आरोपी को अग्रिम जमानत देने का अधिकार न्यायालय के पास है। इस फैसले में बंबई उच्च न्यायालय द्वारा जारी अग्रिम जमानत के आदेश को रद्द कर दिया गया है।
पीठ ने जोर देकर कहा कि SC/ST अधिनियम का उद्देश्य अनुसूचित जाति और जनजाति वर्गों के संवैधानिक अधिकारों का संरक्षण और उनके खिलाफ होने वाले अत्याचारों से उन्हें सुरक्षा प्रदान करना है। इसीलिए संसद ने इस अधिनियम में अग्रिम जमानत पर पाबंदी लगाई है ताकि पीड़ित वर्ग की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
साथ ही, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अग्रिम जमानत प्रदान करते समय अदालत को FIR में दर्ज आरोपों के आधार पर आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत है कि कहीं आरोप बयानों में हद से अधिक आधारहीन तो नहीं।
यह निर्णय दलित-जनजाति अधिकारों के संरक्षण में संवैधानिक न्यायालय के रुख को मजबूती देता है और इस अधिनियम के प्रभावी और न्यायसंगत क्रियान्वयन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

