देश के सबसे पुराने और विवादित बांधों में से एक मुल्लापेरियार बांध को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जाहिर की है। 130 साल पुराने इस बांध में संरचनात्मक कमजोरियां बताई जा रही हैं, जो आसपास एक करोड़ से अधिक लोगों की जान-माल के लिए खतरा बने हुए हैं। केरल बचाओ ब्रिगेड की याचिका पर कोर्ट ने केंद्र सरकार, तमिलनाडु सरकार, केरल सरकार और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) को चार हफ्ते के भीतर जवाब देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने मुल्लापेरियार में नए बांध के निर्माण सहित बांध की सुरक्षा को लेकर सभी पक्षों के पक्षों को सुनवाई के लिये बुलाया है।
मुल्लापेरियार बांध के निर्माण का इतिहास 19वीं सदी के ब्रिटिश राज तक जाता है। इस बांध को 1886 में केरल के भूमि पर बनाकर तमिलनाडु को 999 वर्ष की लीज पर दिया गया था, ताकि यह राज्य अपनी खेती के लिए पानी का उपयोग कर सके। हालांकि बांध के सारे तकनीकी नियंत्रण तमिलनाडु के पास हैं, लेकिन यह केरल में स्थित है। समय के साथ 130 साल पुराना इस बांध की संरचनात्मक स्थिति चिंताजनक मानी गई है। केरल सरकार ने इस बांध को ‘जोखिमपूर्ण’ करार दिया है क्योंकि यह संपूर्ण रूप से एथ्समिक क्षेत्र में बना है और रिसाव व दरारें बढ़ रही हैं, जिससे भारी भूकंप आने पर बांध टूटने का खतरा बढ़ गया है।
साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने बांध का जल स्तर बढ़ाने की अनुमति दी थी, लेकिन हाल के वैज्ञानिक अध्ययन और भूकंपीय गतिविधियों के मद्देनजर केरल ने नई सुरक्षा मांग की है। तमिलनाडु राज्य इस मुद्दे पर बांध को सुरक्षित और सक्षम बताते हुए विरोध करता रहा है और नए बांध के निर्माण को लेकर अनिच्छा दिखा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने केरल बचाओ ब्रिगेड की याचिका पर केंद्र, दोनों राज्यों और NDMA को चार सप्ताह के अंदर अपनी प्रतिक्रियाएं दाखिल करने को कहा है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इस मामले में मानव जीवन की सुरक्षा सर्वोपरि है और सभी पक्षों से पूरी पारदर्शिता के साथ जवाब मांगा गया है। कोर्ट की निगरानी में एक तकनीकी समिति भी गठित की जा सकती है जो बांध की स्थिरता की जांच करेगी।
NDMA को सूचित किया गया है कि वह इस प्राकृतिक आपदा के खतरे की गंभीरता से समीक्षा करे और आवश्यक बचाव तथा तैयारी योजनाएं बनाए। साथ ही केरल और तमिलनाडु सरकारों को सुरक्षा उपायों को सख्ती से लागू करने के निर्देश दिए गए हैं।
मुल्लापेरियार बांध के आसपास करीब 1 करोड़ से अधिक लोग निवास करते हैं, जिनमें केरल के इडूकी जिले और तमिलनाडु के कई जिलों के गांव शामिल हैं। बांध में किसी भी बड़ी दुर्घटना के कारण भारी बाढ़ आ सकती है, जो लाखों लोगों की जान एवं संपत्ति को खतरे में डाल सकती है। प्रशासन और स्थानीय लोग इस खतरे को लेकर सतर्क हैं, परंतु बांध के पुराने ढांचे और विवादों के कारण लोगों में भारी चिंता व्याप्त है।
130 साल पुराने मुल्लापेरियार बांध से जुड़े सुरक्षा मसले ने एक बार फिर भारत की न्यायपालिका और सरकार के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। सुप्रीम कोर्ट का नोटिस इस मामले को जल्द सुलझाने की पहल है, जिससे एक करोड़ से अधिक लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। बांध का पुनर्निर्माण और सुरक्षा उपाय समय की मांग हैं ताकि मानव जीवन और प्रकृति का संरक्षण हो सके।
यह मुद्दा केवल पर्यावरणीय या राजनीतिक नहीं है, बल्कि मानव सुरक्षा का मामला है, जिसका प्रभाव दूरगामी होगा। सरकारों और न्यायपालिका को चाहिए कि वे प्राथमिकता से इस खतरे की चेतावनी को स्वीकार करते हुए त्वरित और कड़े कदम उठाएं।

