बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल बज चुका है और सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने अपनी पहली उम्मीदवारों की सूची जारी कर राजनीतिक माहौल गरमा दिया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी ने 57 सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम घोषित किए हैं। इस लिस्ट में कई हैरान करने वाले फैसले दिखाई दे रहे हैं — जहां 3 बाहुबली नेताओं को टिकट मिला है, वहीं 5 मौजूदा मंत्रियों के नाम भी शामिल हैं। लेकिन जो बात सबसे ज्यादा चर्चा में है, वह यह कि इस लिस्ट में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को जगह नहीं दी गई है।
सूत्रों के मुताबिक, जेडीयू ने इस बार जातीय और संगठनात्मक समीकरणों को ध्यान में रखते हुए पूरी रणनीति बनाई है। सूची में 27 नए चेहरे शामिल हैं जिन्हें पहली बार टिकट दिया गया है। पार्टी ने ऐसे प्रत्याशियों को भी मैदान में उतारा है जो पिछला चुनाव हार चुके थे — ऐसे 11 नाम सूची में मौजूद हैं। यह संकेत है कि जेडीयू पुराने निष्ठावान नेताओं को दोबारा मौका देकर संगठन के भीतर वफादारी को पुरस्कृत करना चाहती है।
विश्लेषकों का कहना है कि पार्टी ने इस सूची में अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और दलित वर्ग को प्राथमिकता दी है। कुछ वरिष्ठ नेताओं का तर्क है कि मुस्लिम प्रत्याशियों की अनुपस्थिति 2025 के चुनाव में जेडीयू की नई राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है, जो एनडीए गठबंधन के तहत भाजपा की लाइन से मेल खाती दिखती है।
सूत्र बताते हैं कि पार्टी ने तीन बाहुबली नेताओं को फिर से टिकट दिया है, जिनका अपने क्षेत्रों में प्रभाव मजबूत माना जाता है। साथ ही, 5 मौजूदा मंत्रियों को पुनः चुनावी दंगल में उतारा गया है। पार्टी प्रमुख का मानना है कि ये उम्मीदवार जेडीयू को अपने-अपने इलाकों में मजबूत पकड़ दिला सकते हैं।
राजद और कांग्रेस सहित महागठबंधन के दलों ने जेडीयू पर तीखा हमला बोला है। विपक्ष का आरोप है कि नीतीश कुमार ने ‘समावेशी राजनीति’ की बात तो की, लेकिन उम्मीदवारों की लिस्ट में वही पुरानी जातीय सियासत और अवसरवाद झलक रहा है। मुस्लिम समुदाय को पूरी तरह दरकिनार किए जाने पर विपक्षी नेताओं ने इसे “राजनीतिक भेदभाव” बताया।
जेडीयू प्रवक्ता ने कहा कि यह पहली सूची है और इसमें संगठनात्मक ज़रूरतों के हिसाब से नाम चुने गए हैं। उन्होंने संकेत दिया कि आगे की सूचनाओं में समुदायिक संतुलन को ध्यान में रखते हुए और भी उम्मीदवार जोड़े जा सकते हैं।

