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राजस्थान हाईकोर्ट ने लिव-इन जोड़ों के रजिस्ट्रेशन हेतु पोर्टल बनाने के निर्देश दिए

राजस्थान उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह सहजीवन (लिव-इन) संबंधों के पंजीकरण के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल शुरू करे। यह आदेश कई ‘लिव-इन’ जोड़ों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान दिया गया। न्यायमूर्ति अनूप कुमार ढंड की अध्यक्षता में हुई सुनवाई में अदालत ने कहा कि जब तक इस संबंध में कोई विशेष कानून नहीं बनाया जाता, तब तक ऐसे संबंधों को सक्षम प्राधिकारी या न्यायाधिकरण के पास पंजीकृत किया जाना चाहिए।

याचिकाकर्ताओं ने अदालत से अनुरोध किया था कि उन्हें उनके परिवारों और समाज के अन्य लोगों से खतरा है, इसलिए उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। इस पर अदालत ने कहा कि अनेक जोड़े ‘लिव-इन’ संबंधों में रह रहे हैं, लेकिन उनके रिश्ते को सामाजिक स्वीकृति नहीं मिलने के कारण वे खतरे में हैं। ऐसे में वे अपनी स्वतंत्रता और जीवन की सुरक्षा के लिए अदालत की शरण ले रहे हैं।

न्यायालय ने कहा कि भले ही सहजीवन का विचार आधुनिक और आकर्षक लग सकता है, लेकिन इससे कई जटिल समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि ‘लिव-इन’ संबंधों में रहने वाली महिला को पत्नी का दर्जा नहीं मिलता, न ही समाज में इसे पूर्ण स्वीकृति प्राप्त होती है। इसलिए, ऐसे संबंधों को विधिवत रूप से पंजीकृत किया जाना चाहिए।

अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि प्रत्येक जिले में एक विशेष समिति गठित की जाए, जो ‘लिव-इन’ जोड़ों की शिकायतों की जांच कर उनका समाधान करेगी। साथ ही, एक वेबसाइट या वेब पोर्टल बनाया जाए, जिससे इस तरह के रिश्तों से जुड़ी समस्याओं का समाधान हो सके।

इसके अलावा, न्यायालय ने आदेश की प्रति राजस्थान राज्य के मुख्य सचिव, विधि एवं न्याय विभाग के प्रधान सचिव तथा न्याय एवं समाज कल्याण विभाग, नई दिल्ली के सचिव को भेजने का निर्देश दिया। अदालत ने यह भी कहा कि इस आदेश के अनुपालन से जुड़ी रिपोर्ट एक मार्च 2025 तक न्यायालय में प्रस्तुत की जाए, जिसमें सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की जानकारी दी जाए।

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