
हाल ही में सरकार ने यह निर्णय लिया है कि आगामी आम जनगणना के साथ-साथ जातीय जनगणना भी कराई जाएगी। आज़ादी के बाद यह पहली बार होगा जब सभी धर्मों और समुदायों के साथ मुस्लिम समाज की जातियों का भी विस्तृत ब्योरा इकट्ठा किया जाएगा। इस बार जनगणना फॉर्म में धर्म के साथ-साथ जाति का कॉलम भी शामिल किया जाएगा, जिसमें मुसलमानों की जातियों की जानकारी भी दर्ज की जाएगी।
मकसद यह है कि जब जनगणना के आंकड़े सामने आएंगे, तो यह स्पष्ट हो सकेगा कि मुस्लिम समाज कोई एकरूप समूह नहीं है, बल्कि इसमें भी पसमांदा जैसे पिछड़े वर्ग मौजूद हैं। बताया जा रहा है कि मुस्लिमों में पसमांदा समुदाय की आबादी करीब 80-85% है, लेकिन इस वर्ग को अब तक विकास की मुख्यधारा में समुचित स्थान नहीं मिल सका है। हालांकि, यह साफ किया गया है कि केवल धार्मिक आधार पर आरक्षण संभव नहीं है, इसलिए मुस्लिम आरक्षण की मांग स्वीकार नहीं की जाएगी।
जनगणना का कार्य अगले दो से तीन महीनों में शुरू किया जाएगा। इसके लिए अधिकारियों की नियुक्ति प्रक्रिया शीघ्र प्रारंभ की जाएगी। पूरी जनगणना डिजिटल माध्यम से कराई जाएगी और इसे लगभग 15 दिनों में पूरा करने की योजना है। इसमें आधार से डाटा लिंक किया जाएगा, बायोमेट्रिक जानकारी ली जाएगी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भी मदद ली जाएगी। हालांकि, आंकड़ों का विश्लेषण और रिपोर्ट तैयार करने में एक-दो साल लग सकते हैं।
सरकार का उद्देश्य है कि 2029 का लोकसभा चुनाव महिला आरक्षण लागू करके कराया जाए। इसके लिए जनगणना पूरी होने के बाद परिसीमन की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। एक विशेष आयोग गठित किया जाएगा, जो राज्यों का दौरा कर रिपोर्ट तैयार करेगा। अगर ओबीसी की संख्या में वृद्धि पाई जाती है, तो सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की वर्तमान 27% सीमा बढ़ाने पर विचार किया जा सकता है। फिलहाल “आरक्षण में आरक्षण” यानी सब-कैटेगरी के मुद्दे पर जस्टिस रोहिणी आयोग की रिपोर्ट पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है, लेकिन जातीय जनगणना के बाद इसे गंभीरता से देखा जाएगा।
राहुल गांधी द्वारा प्रस्तावित “तेलंगाना मॉडल” को सरकार ने खारिज कर दिया है, यह कहते हुए कि इससे ओबीसी, एससी और एसटी समुदायों की सुरक्षा को खतरा हो सकता है। जनगणना की प्रक्रिया को लेकर सभी राजनीतिक दलों से बातचीत की जा सकती है, लेकिन यह मुद्दा INDIA गठबंधन में मतभेद और उत्तर-दक्षिण विभाजन की बहस को जन्म दे सकता है।
वहीं, निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग को सरकार ने व्यावहारिक नहीं माना है। पूर्व में मनमोहन सिंह सरकार के दौरान भी यह मांग उठी थी, परंतु निजी कंपनियों ने इसका विरोध किया था। हालांकि, अनुच्छेद 15(5) के तहत निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की व्यवस्था पहले से लागू है।