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सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून 2025 पर सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा, पढ़ें दोनों ओर की दलीलें

सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून 2025 को लेकर तीन दिनों तक चली लंबी सुनवाई के बाद अब अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और जस्टिस ए. जी. मसीह की पीठ ने कहा कि जरूरत पड़ने पर इस कानून पर अंतरिम रोक लगाई जा सकती है, लेकिन इसका अंतिम निर्णय बाद में सुनाया जाएगा। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं और सरकार दोनों पक्षों ने अपने-अपने तर्क कोर्ट के सामने रखे।

याचिकाकर्ता पक्ष की दलीलें
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और राजीव धवन ने वक्फ कानून के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा:

  • वक्फ मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सामाजिक व्यवस्था का अभिन्न हिस्सा है।
  • यह केवल एक दान नहीं, बल्कि ईश्वर को समर्पण है — अल्लाह के लिए, परलोक की चिंता के साथ।
  • अन्य धर्मों में भी दान की परंपरा है, लेकिन वक्फ का भाव और उद्देश्य बिल्कुल अलग है।
  • कानून में गैर-मुस्लिमों को सीमित प्रतिनिधित्व (केवल 4 सदस्यों) देना भी पक्षपातपूर्ण है।

राजीव धवन ने कहा कि वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर दावे का आधार अस्पष्ट है।

  • सेक्शन 3C के तहत राजस्व रिकॉर्ड में बदलाव का अधिकार वक्फ को बिना किसी ठोस निर्धारण प्रक्रिया के दे दिया गया है।
  • यह असंवैधानिक है क्योंकि इससे किसी की संपत्ति पर वक्फ का दावा मनमाने ढंग से किया जा सकता है।
  • यह तय करना आवश्यक है कि संपत्ति सरकारी है या नहीं — और ये अधिकार केवल सरकार को नहीं दिया जा सकता।

सरकार की दलीलें
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वक्फ कानून का बचाव किया:

  • उन्होंने कहा कि जब तक सुप्रीम कोर्ट अंतिम रूप से कानून को असंवैधानिक नहीं मानता, तब तक कानून पर अंतरिम रोक नहीं लगनी चाहिए।
  • वक्फ एक बार घोषित हो जाने पर उसे वापस पाना लगभग असंभव होता है, इसलिए अंतरिम रोक से पहले सावधानी जरूरी है।
  • उन्होंने यह भी कहा कि वक्फ की अवधारणा केवल मुस्लिमों तक सीमित नहीं है — कोई भी व्यक्ति (यहां तक कि हिंदू भी) वक्फ को संपत्ति दान कर सकता है।
  • सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसले में वक्फ को संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत ‘राज्य’ की मान्यता दी गई है। ऐसे में यह कहना कि इसमें केवल एक धर्म के लोग शामिल हो सकते हैं, तर्कसंगत नहीं है।

अब सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि वक्फ कानून 2025 पर अंतरिम रोक लगाई जाए या नहीं, और अंततः इसका संवैधानिक मूल्यांकन कैसे किया जाए।

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