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“पाकिस्तान का दोहरा चेहरा: ईरान पर हमले की निंदा के बाद अमेरिकी जनरल को ‘निशान-ए-इम्तियाज’ से सम्मानित किया”

पाकिस्तान की विदेश नीति में दोहरे मापदंडों का मुद्दा लंबे समय से चर्चा में रहा है, और हाल ही में अमेरिकी सेना की केंद्रीय कमांड (CENTCOM) के प्रमुख जनरल माइकल ई. कुरिल्ला को ‘निशान-ए-इम्तियाज़ (मिलिट्री)’ सम्मान दिए जाने का मामला इसका एक स्पष्ट उदाहरण है। यह घटना न केवल पाकिस्तान की कूटनीतिक रणनीति की जटिलता को दर्शाती है, बल्कि इसके पड़ोसी देश ईरान के साथ संबंधों में विश्वासघात के आरोपों को भी बल देती है।

पाकिस्तान की विदेश नीति को अक्सर अवसरवादी और परिस्थितियों के अनुसार बदलने वाली माना जाता है। यह नीति क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियों के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश करती है, लेकिन इसमें कई बार विरोधाभास देखने को मिलते हैं। कुछ प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं:

पाकिस्तान और अमेरिका के बीच लंबे समय से रक्षा और खुफिया सहयोग रहा है, खासकर आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में। हालांकि, यह सहयोग अक्सर एकतरफा हितों पर आधारित रहा है। पाकिस्तान ने अमेरिका से आर्थिक और सैन्य सहायता प्राप्त करने के लिए कई बार अपनी नीतियों को समायोजित किया है, भले ही यह उसके अन्य सहयोगियों, जैसे ईरान, के हितों के खिलाफ हो।

पाकिस्तान ने सार्वजनिक रूप से ईरान के साथ भाईचारे और क्षेत्रीय स्थिरता की बात की है, खासकर जब अमेरिका या इजरायल ने ईरान पर हमले किए। उदाहरण के लिए, 22 जून 2025 को अमेरिकी हमले और 13 जून 2025 को इजरायली हमले के बाद पाकिस्तान ने इनकी निंदा की थी। लेकिन उसी समय, यह आरोप भी सामने आए कि पाकिस्तान ने इन हमलों में खुफिया जानकारी साझा करके अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग किया।

पाकिस्तान की विदेश नीति में दोहरे मापदंड स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं, जहां वह एक तरफ ईरान के साथ खड़े होने का दावा करता है, वहीं दूसरी तरफ अमेरिका और इजरायल के साथ गुप्त सहयोग करता है। जनरल माइकल ई. कुरिल्ला को निशान-ए-इम्तियाज़ देना इस नीति का एक ठोस उदाहरण है, जो न केवल ईरान के साथ विश्वासघात को दर्शाता है, बल्कि पाकिस्तान की कूटनीति में अवसरवाद और असंगतता को भी उजागर करता है। यह कदम क्षेत्रीय स्थिरता और विश्वास पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, खासकर ईरान जैसे पड़ोसी देश के साथ संबंधों में

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