विश्वकर्मा पूजा हर साल 17 सितंबर को मनाई जाती है, जो इस वर्ष बुधवार को पड़ेगी। यह दिन भारतीय ज्योतिष के अनुसार कन्या संक्रांति का समय भी होता है, जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है। इस दिन को विश्वकर्मा जयंती के रूप में भी जाना जाता है। भगवान विश्वकर्मा को भारत में यांत्रिकी, स्थापत्य कला, वास्तुकला और शिल्पकारों का संरक्षक माना जाता है। इसीलिए यह दिन इंजीनियर, आर्किटेक्ट, तकनीकी विशेषज्ञ, शिल्पकार और कारीगरों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है.
हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा ने सृष्टि के निर्माण में विशेष योगदान दिया था। इन्होंने स्वर्ग लोक, द्वारका, लंका और विभिन्न महलों का निर्माण किया। इन्हें पहला वास्तुकार, यांत्रिकी और तकनीकी विशेषज्ञ भी माना जाता है। इसलिए इस दिन इंजीनियर, आर्किटेक्ट, शिल्पकार, कारखानदार और मजदूर अपने औजारों, मशीनरी, गाड़ियों और उपकरणों की पूजा करते हैं ताकि उनके कार्य सफल हों और उन्हें समृद्धि मिले। माना जाता है कि पूजा से कार्य में कुशलता, सकारात्मक ऊर्जा और सफलता मिलती है.
विश्वकर्मा पूजा के दिन कार्यस्थलों, कारखानों और कार्यालयों को साफ किया जाता है। सभी मशीनों और औजारों की पूजा की जाती है और भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा या चित्र स्थापित कर विधि-विधान से आराधना की जाती है। पूजा में अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, फल, मिठाई और पंचामृत का प्रयोग होता है। पूजा के बाद अपने उपकरणों को तिलक लगाया जाता है। इस दिन काम करने से बचा जाता है और कई जगह स्कूलों, कार्यालयों और फैक्ट्रीज में अवकाश रहता है.
2025 में विश्वकर्मा पूजा के दिन सूर्य कन्या राशि में 01:55 बजे प्रवेश करेगा, जो इसे एक खास ज्योतिषीय महत्व प्रदान करता है। ऐसे समय पूजा करने से लाभ अधिक होने की मान्यता है। इस वर्ष का ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4:33 से 5:20 के बीच है और विजय मुहूर्त दोपहर 12:18 से 3:07 बजे तक रहेगा। राहुकाल का समय पूजा के लिए शुभ नहीं माना जाता, इसलिए इस दौरान पूजा से बचना चाहिए.
विश्वकर्मा पूजा न केवल तकनीकी और औद्योगिक क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह लोगों के जीवन में समृद्धि, शांति और सफलता लाने का भी माध्यम माना जाता है। इसके अलावा, इस दिन जरूरतमंदों को दान देना भी शुभ माना जाता है। यह पर्व पूरे भारत में खासकर बिहार, झारखंड, बंगाल, उत्तर भारत और गुजरात जैसे स्थानों पर धूमधाम से मनाया जाता है.

