नवरात्रि 2025 के दूसरे दिन यानी 23 सितंबर को मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है, जो मां दुर्गा का दूसरा रूप है। ब्रह्मचारिणी मां तपस्या, संयम और ज्ञान की देवी हैं। उनका स्वरूप शांत, ज्योतिर्मय और तेजस्वी होता है। दाहिने हाथ में जपमाला और बाएं हाथ में कमण्डल धारण किए मां ब्रह्मचारिणी तपस्या और साधना की प्रतिमा मानी जाती हैं।
ब्रह्मा का अर्थ है तपस्या और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली। यही कारण है कि मां ब्रह्मचारिणी को तपस्या की देवी कहा जाता है। उनकी आराधना करने से भक्तों को संयम, त्याग, वैराग्य और सदाचार के गुण मिलते हैं। इससे जीवन की कठिनाइयों से पार पाने की शक्ति और आध्यात्मिक बल प्राप्त होता है। मानस की शांति और विजय भी मां के आशीर्वाद से संभव होती है।
पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि मां ब्रह्मचारिणी का जन्म हिमालय के राजा की पुत्री के रूप में हुआ। उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए हजारों वर्षों तक कठोर तपस्या की। फल, फूल, बेलपत्र और अंततः निर्जल तपस्या की। इस तपस्या की महिमा से देवता, ऋषि-मुनि और सिद्ध भी आश्चर्यचकित हो गए और उनकी स्तुति करने लगे। अंत में ब्रह्मा जी की आज्ञा से भगवान शिव उनसे विवाह करते हैं।
इस कथा का पाठ नवरात्रि के दूसरे दिन करने से मानसिक शांति, संकल्प शक्ति, और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
आज सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके साफ-सुथरे स्थान पर गंगाजल से पूजा स्थल को शुद्ध करें।
पीले रंग के वस्त्र पहनें और पीले या सफेद फूल अर्पित करें। मां को मिसरी का भोग लगाएं।
पूजा के दौरान मंत्रों का जाप आवश्यक है, जैसे—
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नमः”
पूजा के बाद मां की आरती करना शुभ माना जाता है।
मां ब्रह्मचारिणी सादे सफेद वस्त्रों में सुशोभित, शांत और करुणामयी हैं। उनके हाथों में जपमाला और कमंडल इस तपस्या की गाथा बताते हैं। भक्तों को यह विश्वास होता है कि मां माँगों को शीघ्र स्वीकारती हैं और सभी बाधाएं दूर करती हैं।
यह दिन तपस्या और संयम से जुड़ा हुआ है। जो भी भक्त मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होते समय इस कथा का पाठ करते हैं, उनके मन की तमाम नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है और वे अपनी साधना में सफल होते हैं।

