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क्या 28 हजार साल (द्वापर युग) पुराना है ‘कल्प विग्रह’? शिवलिंग को लेकर उठ रहे रहस्यमयी दावे

नई दिल्ली। सोशल मीडिया और कई ब्लॉग्स पर पिछले कुछ वर्षों से एक रहस्यमयी प्रतिमा की चर्चा हो रही है, जिसे ‘कल्प विग्रह’ कहा जाता है। दावा किया जाता है कि यह एक प्राचीन शिव की मूर्ति है, जिसकी आयु 26 से 28 हजार वर्ष पुरानी बताई जाती है। अगर यह सच साबित होता है, तो यह अब तक का सबसे पुराना हिंदू विग्रह माना जाएगा। जानकारी के अनुसार, वर्ष 1950 के आसपास तिब्बत में एक धातु-आवृत लकड़ी के संदूक से यह मूर्ति प्राप्त हुई थी। बताया जाता है कि उसी संदूक में लकड़ी की पट्टियों पर लिखा हुआ एक पांडुलिपि भी था, जिसमें इस मूर्ति को ‘कल्प विग्रह’ कहा गया। मूर्ति को पीतल जैसी धातु से बनी छोटी और साधारण आकृति बताया जाता है। कई विवरणों में इसे सर्पफण (नाग) के साथ शिव रूप में दर्शाया गया है। इसके समर्थकों का कहना है कि यह मूर्ति द्वापर युग की है और महाभारत काल से भी पहले की है। उनका मानना है कि यह मूर्ति मानव सभ्यता के अत्यंत प्राचीन चरण में हिंदू आस्था और शिव पूजा के अस्तित्व का प्रमाण हो सकती है। हालांकि, इन दावों की पुष्टि आज तक किसी भी प्रतिष्ठित पुरातत्व शोध या अकादमिक साहित्य में नहीं हुई है। मूर्ति की वास्तविकता, उसकी आयु और पांडुलिपि – इन सभी पहलुओं को लेकर कोई वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। विशेषज्ञों के अनुसार, जब तक प्रमाणिक कार्बन डेटिंग या पुरातात्विक परीक्षण सामने नहीं आते, तब तक इसे केवल एक कथा या लोक-परंपरा ही माना जाएगा। भले ही वैज्ञानिक स्तर पर इसे मान्यता नहीं मिली है, लेकिन सोशल मीडिया पर यह विषय लगातार लोगों को आकर्षित कर रहा है। कई लोग इसे हिंदू धर्म की गौरवशाली परंपरा से जोड़कर देखते हैं, तो कुछ इसे केवल एक अफवाह या रहस्य मानते हैं। कुल मिलाकर, ‘कल्प विग्रह’ आज भी रहस्य के घेरे में है। क्या यह वास्तव में मानव सभ्यता का सबसे पुराना शिव विग्रह है या सिर्फ एक लोककथा – इसका जवाब अभी बाकी है।

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