पश्चिम बंगाल में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले सियासत अचानक तेज हो गई है। तृणमूल कांग्रेस से निष्कासित विधायक हुमायूं कबीर द्वारा मुर्शिदाबाद के बेलडांगा में बाबरी मस्जिद की नींव रखने के कदम ने पूरे राज्य का राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है। बाबरी विध्वंस की बरसी के दिन हुई इस गतिविधि ने टीएमसी, भाजपा और कांग्रेस—तीनों दलों को खुले टकराव में ला दिया है।
हुमायूं कबीर, जिन्हें हाल ही में टीएमसी ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण बाहर का रास्ता दिखाया था, ने अपने घोषित कार्यक्रम के अनुसार मस्जिद का शिलान्यास किया। उन्होंने कहा कि मुसलमानों को मस्जिद बनाने का संवैधानिक अधिकार है और इसे कोई नहीं रोक सकता। हालांकि उन्होंने विवाद पैदा करने के आरोपों को सिरे से खारिज किया और कहा कि यह मुद्दा धार्मिक अधिकारों से जुड़ा है, राजनीति से नहीं।
उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने इस कदम को “टीएमसी की नौटंकी” बताया। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि “बाबर के नाम पर एक भी ईंट रखी गई” तो भाजपा उसे हटा देगी। वहीं, कांग्रेस नेता इमरान मसूद ने भी हुमायूं कबीर पर निशाना साधा और कहा कि ममता बनर्जी को ऐसे मामलों में “सख्त कार्रवाई” दिखानी चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि मस्जिद का नामकरण साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के इरादे से किया जा रहा है और इससे पूरे देश के मुसलमानों की छवि प्रभावित होगी।
टीएमसी ने इस विवाद के बीच हुमायूं कबीर को 4 दिसंबर 2025 को पार्टी से निलंबित कर दिया। वरिष्ठ नेता फिरहाद हकीम ने कहा कि कबीर को कई बार चेतावनी दी गई थी, लेकिन उन्होंने लगातार पार्टी लाइन से हटकर बयान और गतिविधियां जारी रखीं। यह भी उल्लेखनीय है कि 2015 में भी वे ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी की आलोचना करने के कारण छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित हो चुके थे।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुर्शिदाबाद जैसे मुस्लिम-बहुल जिले में यह विवाद चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर सकता है। टीएमसी जहां खुद को इससे दूर दिखाने की कोशिश कर रही है, वहीं भाजपा और कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर ममता सरकार पर लगातार हमलावर हैं। बाबरी विध्वंस की बरसी पर उठा यह विवाद अब बंगाल की चुनावी राजनीति के केंद्र में आ गया है, जिससे आने वाले दिनों में सियासी तनाव और बढ़ने की संभावना है।

