देश की राजधानी दिल्ली में बढ़ता वायु प्रदूषण अब केवल पर्यावरण से जुड़ी समस्या नहीं रह गया है, बल्कि यह एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का रूप ले चुका है। हाल ही में लोकलसर्कल (LocalCircles) द्वारा किए गए एक सर्वे में सामने आया है कि दिल्ली-एनसीआर के 82% निवासी मानते हैं कि उनके परिवार या करीबी लोग प्रदूषण से जुड़ी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। अस्पतालों में सांस और हृदय रोगों के मामलों में लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है, जिससे आम लोगों की चिंता और बढ़ गई है।
सर्वे में यह भी सामने आया कि 73% लोग इस बात से डरे हुए हैं कि भविष्य में उन्हें अपने परिवार के लिए लॉन्ग टर्म हेल्थ केयर का खर्च उठाना मुश्किल हो जाएगा। प्रदूषण के कारण इलाज का बोझ बढ़ रहा है, जबकि आमदनी सीमित होने के कारण लोग मानसिक दबाव में भी आ रहे हैं। इसके बावजूद रोजगार और आजीविका की मजबूरी के चलते अधिकांश लोग दिल्ली छोड़ने में असमर्थ हैं।
हालांकि, सर्वे के मुताबिक 8% लोग ऐसे हैं जो प्रदूषण के चलते दिल्ली छोड़ने के लिए तैयार हैं। यह आंकड़ा भले ही छोटा लगे, लेकिन यह राजधानी में रहने वालों की बढ़ती हताशा और स्वास्थ्य को लेकर गहरे डर को दर्शाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर हालात ऐसे ही बने रहे तो भविष्य में यह संख्या और बढ़ सकती है।
दिल्ली के जाने-माने चेस्ट स्पेशलिस्ट डॉ. अरविंद कुमार ने प्रदूषण को लेकर और भी चिंताजनक खुलासा किया है। उनका कहना है कि एयर प्यूरीफायर भी लोगों को पूरी तरह सुरक्षित नहीं रख पा रहे हैं, क्योंकि प्रदूषण हर जगह फैला हुआ है। इसी का नतीजा है कि लंग कैंसर के मामलों में तेज़ी से इजाफा हो रहा है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि लगभग 80% लंग कैंसर मरीज नॉन स्मोकर्स हैं, जो सीधे तौर पर जहरीली हवा के खतरे को उजागर करता है।
वहीं, इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा कि प्रदूषण और जलभराव जैसी समस्याएं पिछली सरकारों की नीतियों का परिणाम हैं, जिनका खामियाजा आज दिल्ली की जनता भुगत रही है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि मौजूदा सरकार हालात सुधारने के लिए पूरी कोशिश कर रही है और इसके सकारात्मक नतीजे सामने आएंगे, हालांकि इसमें कुछ समय लग सकता है।
कुल मिलाकर, सर्वे और विशेषज्ञों की राय यह साफ संकेत देती है कि दिल्ली में प्रदूषण अब सीधे तौर पर लोगों के स्वास्थ्य, भविष्य और जीवनशैली को प्रभावित कर रहा है। अगर जल्द ठोस और प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो यह संकट और गहराता जा सकता है।

