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जाने क्या है क्वारंटीन,आइसोलेशन और इन्क्यूबेशन का मतलब

हेल्थ डेस्क – कोरोना महामारी में कुछ शब्द हमारी जिंदगी का हिस्सा हो गए है और ऐसे शब्दों इस्तेमाल हो आमजन में प्रचलित हो गया है पहले आम तौर पर इस्तेमाल नहीं हो रहे थे, यानी बोलचाल की भाषा का हिस्सा नहीं थे. लेकिन अब धीरे-धीरे बन रहे हैं कोरोना वायरस की वजह से.

आइसोलेशन – इसका मतलब खुद को संक्रमित लोगों से दूर रखने के लिए अलग कर लेना. ये बचाव वाला कदम है. ताकि आप लोगों के संपर्क में आएं ही नहीं. अगर आप स्वस्थ हैं, तो बाहर जाना या मिलना-जुलना कम करने के लिए खुद को एक निश्चित जगह तक सीमित रखना सेल्फ आइसोलेशन कहलाता है. ये आप घर पर करें तो बेहतर. हालाँकि सेल्फ आइसोलेशन और सेल्फ क्वारंटाइन में अंतर है. इन दोनों को अदल बदल कर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.

वायरस शरीर के संपर्क में आता है , तो फ़ौरन बीमारी के लक्षण नहीं दिखते. इन लक्षणों को दिखने में कुछ समय लगता है. इस वायरस के मामले में ये समय दो से चौदह दिन का है. जो समय लक्षणों को दिखने में लगता है, उसे ही इन्क्यूबेशन पीरियड कहते हैं. इस दौरान व्यक्ति इन्फेक्टेड होता है, लेकिन लक्षण नहीं दिखने की वजह से बाकी लोगों तक भी इस वायरस को फैला सकता है. इसलिए किसी संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आने के बाद खुद पर नज़र रखना ज़रूरी है.

क्वारंटीन – क्वारंटीन का मतलब होता है किसी ख़ास क्षेत्र के बाहर से आए किसी भी जीवित व्यक्ति या पशु को अलग इलाके में रखना. ताकि उसके साथ अगर कोई इन्फेक्शन या बैक्टेरिया/वायरस आए हैं तो उन्हें फैलने से रोका जा सके. उनके लक्षणों पर नज़र रखी जा सके और संबंधित व्यक्ति का इलाज किया जा सके. ख़ासतौर पर जब वो व्यक्ति या जानवर ऐसे इलाके से आया हो जहां किसी तरह का संक्रमण फैला हो.

सोशल डिस्टेंसिंग – सोशल यानी सामाजिक. डिस्टेंस यानी दूरी. इसका मतलब होता है लोगों से मिलना-जुलना, उनसे ज्यादा सम्पर्क रखना बंद कर देना. उन सभी जगहों से बचकर रहना जहां लोग इकठ्ठा हो सकते हों. जैसे स्कूल, कॉलेज, म्यूजिक कॉन्सर्ट, फेस्ट, सिनेमाघर इत्यादि. ये वायरस खांसने या छींकने वालों के संपर्क में आने पर फैलता है. इसे बढ़ने से रोकने के लिए लोग आपस में दूरी बढ़ा लेते हैं. एक-दूसरे के करीब जाना बंद कर देते हैं. नहीं, इमोशनली नहीं. फिजिकली. अधिकतर लोग आपस में कम से कम एक मीटर की दूरी बनाकर रखते हैं. इसे ही सोशल डिस्टेंसिंग कहा गया है. आप चाहे बीमार हों या न हों, बूढ़े हों या जवान हों, वायरस के इस तरह फैलने की स्थिति में आपको इसे फॉलो करना ही चाहिए.

इन्क्यूबेशन – वायरस शरीर के संपर्क में आता है , तो फ़ौरन बीमारी के लक्षण नहीं दिखते. इन लक्षणों को दिखने में कुछ समय लगता है. इस वायरस के मामले में ये समय दो से चौदह दिन का है. जो समय लक्षणों को दिखने में लगता है, उसे ही इन्क्यूबेशन पीरियड कहते हैं. इस दौरान व्यक्ति इन्फेक्टेड होता है, लेकिन लक्षण नहीं दिखने की वजह से बाकी लोगों तक भी इस वायरस को फैला सकता है. इसलिए किसी संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आने के बाद खुद पर नज़र रखना ज़रूरी है.

सेल्फ क्वारंटीन – अगर आप ऐसे इलाके में हैं जहां संक्रमण फैला है, या आप ऐसी जगह से ट्रैवल करके आए हैं जहां पर इस संक्रमण के मामले सामने आये हैं, तो आप खुद को 14 दिनों तक अलग रहकर ये देखें कि आपमें कहीं लक्षण तो नहीं दिख रहे. सलाहियत यही है कि अपने घर में रहें. किसी से मिले-जुलें नहीं, बाहर कम से कम जाएं. आस-पास अगर लोग हों तो उनसे तीन से छह फ़ीट की दूरी बनाए रखें.

हर्ड इम्युनिटी – Herd शब्द का मतलब होता है झुंड. जब लोगों का एक बड़ा झुंड किसी संक्रामक बीमारी से इम्यून हो जाता है, यानी उस रोग का प्रतिरोधक हो जाता है, तो उसे हर्ड इम्युनिटी कहा जाता है. ये सिर्फ संक्रामक बीमारियों के लिए इस्तेमाल होता है. कोरोना वायरस के लिए भी ये कहा जा रहा है कि एक बार अगर काफी लोग इसकी चपेट में आकर ठीक हो गए, तो फिर ये वायरस उनसे आगे नहीं फैलेगा. इस तरह इम्यून हो चुके लोगों के पास अगर कमज़ोर इम्युनिटी वाले लोग भी हों, तो भी उन्हें चिंता करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि ये वायरस उन तक नहीं पहुंच पाएगा. ऐसा दो तीन तरीकों से हो सकता है.

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