
सिडनी: वैज्ञानिकों ने प्रशांत महासागर में एक ऐसी घटना का पता लगाया है, जिसने सभी को हैरान कर दिया है। शोधकर्ताओं का मानना है कि लगभग एक करोड़ साल पहले पृथ्वी पर कुछ असाधारण घटना घटी होगी। प्रशांत महासागर की गहराई से लिए गए चट्टानों के नमूनों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि उस समय रेडियोधर्मी तत्व ‘बेरिलियम-10’ की मात्रा में अचानक वृद्धि हुई थी। यह खोज ‘नेचर कम्युनिकेशंस’ जर्नल में प्रकाशित हुई है और इससे भूवैज्ञानिकों को महासागरों की गहराई से प्राप्त नमूनों के माध्यम से पुरानी घटनाओं की तारीख जानने का नया तरीका मिल गया है। हालांकि, बेरिलियम-10 में इस विषमता का कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। क्या यह वैश्विक महासागरीय धाराओं में बड़े बदलाव, किसी तारे के अंत, या फिर दो या अधिक तारों के टकराने के कारण हुआ होगा?
शोधकर्ताओं की जानकारी
एक वैज्ञानिक ने बताया कि वह समुद्र की गहराई में मौजूद धीमी गति से बनने वाली चट्टानों में ब्रह्मांडीय धूलकण (स्टारडस्ट) की तलाश कर रहे हैं। इससे पहले, उन्होंने अंटार्कटिका में बर्फ के नमूनों का अध्ययन किया था। इस बार उनकी खोज समुद्र की गहराई में हुई है। प्रशांत महासागर के लगभग 5,000 मीटर गहरे रसातल क्षेत्र में, जहां कभी सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंचता, वहां भी जीवन और गतिविधियां मौजूद हैं। यहां पाई जाने वाली धात्विक चट्टानें, जिन्हें ‘फेरोमैंगनीज क्रस्ट’ कहा जाता है, पानी में घुले खनिजों के साथ मिलकर लाखों सालों में धीरे-धीरे विकसित होती हैं। ये चट्टानें दस लाख साल में केवल कुछ मिलीमीटर ही बढ़ती हैं। (गुफाओं में पाए जाने वाले ‘स्टैलेक्टाइट्स’ और ‘स्टैलेग्माइट्स’ भी इसी तरह बनते हैं, लेकिन उनकी गति हजारों गुना तेज होती है।) यह प्रक्रिया लाखों सालों तक चलती है और ये चट्टानें ब्रह्मांडीय धूलकण को अपने अंदर समेट लेती हैं।
1976 में मिला था फेरोमैंगनीज क्रस्ट
रेडियोधर्मी तत्व बेरिलियम-10 का उपयोग करके इन चट्टानों की उम्र का पता लगाया जा सकता है। यह तत्व ऊपरी वायुमंडल में तब बनता है जब ब्रह्मांडीय किरणें वायु के अणुओं से टकराती हैं। यह टक्कर नाइट्रोजन और ऑक्सीजन जैसे वायुमंडलीय घटकों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ देती है। ब्रह्मांडीय धूलकण और बेरिलियम-10 दोनों अंततः पृथ्वी के महासागरों में पहुंच जाते हैं और वहां फेरोमैंगनीज क्रस्ट में शामिल हो जाते हैं। 1976 में मध्य प्रशांत क्षेत्र से एक बड़ा फेरोमैंगनीज क्रस्ट प्राप्त किया गया था, जिसका अध्ययन किया गया।
वैज्ञानिकों ने क्या पाया?
अध्ययन के परिणामों से पता चला कि पिछले एक करोड़ सालों में यह चट्टान केवल 3.5 सेंटीमीटर मोटी हुई है और यह दो लाख साल से अधिक पुरानी है। रेडियोधर्मी क्षय की प्रक्रिया काफी जटिल होती है, और इसका मतलब है कि उस समय किसी घटना ने अतिरिक्त बेरिलियम-10 को इन चट्टानों में जमा कर दिया होगा। वैज्ञानिकों ने त्रुटियों से बचने के लिए कई बार माप लिए और रासायनिक विश्लेषण किया। लगभग 3,000 किलोमीटर दूर स्थित विभिन्न स्थानों से लिए गए नमूनों के विश्लेषण से पता चला कि लगभग एक करोड़ साल पहले प्रशांत महासागर में बेरिलियम-10 की मात्रा में अचानक वृद्धि हुई थी।
एक करोड़ साल पहले क्या हुआ था?
पिछले साल हुए एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन से पता चला था कि लगभग एक करोड़ 20 लाख साल पहले ‘अंटार्कटिक सर्कम्पोलर करंट’ नामक महासागरीय धाराएं तेज हुईं, जिसने अंटार्कटिक महासागर के वर्तमान स्वरूप को प्रभावित किया। क्या प्रशांत महासागर में बेरिलियम-10 की यह वृद्धि वैश्विक महासागरीय परिसंचरण की शुरुआत का संकेत हो सकती है? अगर महासागरीय धाराएं जिम्मेदार होतीं, तो बेरिलियम-10 पृथ्वी पर असमान रूप से वितरित होता और कुछ नमूनों में इसकी कमी भी देखी जाती। अब वैज्ञानिक दुनिया भर के महासागरों और दोनों गोलार्धों से नए नमूने एकत्र कर रहे हैं, ताकि इस रहस्य का पता लगाया जा सके।