
मोदी सरकार की नीतियों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन अब आम हो चुके हैं, लेकिन वकील और उनके संगठन अब तक बहुत कम मामलों में इतनी मुखरता से विरोध में उतरे हैं। हाल ही में, 1961 के वकील कानून में प्रस्तावित संशोधन को लेकर देशभर के वकील आक्रोशित हैं और इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं। कई छोटे-बड़े शहरों में इसके खिलाफ प्रदर्शन और हड़ताल देखने को मिल रही है। इस बीच, कांग्रेस पार्टी ने भी वकीलों के आंदोलन का समर्थन किया है और उनके पक्ष में बयान जारी किया है।
कांग्रेस का समर्थन
कांग्रेस के अखिल भारतीय कमेटी के कानून, मानवाधिकार और सूचना के अधिकार विभाग ने वकीलों के विरोध का समर्थन करते हुए केंद्र सरकार की आलोचना की है। विभाग का कहना है कि प्रस्तावित विधेयक का मसौदा न केवल खराब है, बल्कि यह वकालत जगत से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों को भी नजरअंदाज करता है। सरकार इस विधेयक के माध्यम से वकील और लॉ ग्रेजुएट की परिभाषा तक बदलने जा रही है। फिलहाल, यह मसौदा कानून मंत्रालय की वेबसाइट पर जनता की राय और सुझाव के लिए उपलब्ध कराया गया है।
मुख्य विवादित प्रावधान
कांग्रेस ने केंद्र सरकार से अपील की है कि जब तक इस विधेयक पर व्यापक चर्चा और संबंधित पक्षों से परामर्श नहीं हो जाता, तब तक इसे लागू न किया जाए। इस विधेयक को लेकर कई चिंताएं हैं, लेकिन कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दो बड़े मुद्दों को सबसे अहम बताया है:
- हड़ताल और बहिष्कार के अधिकार पर रोक – सिंघवी का कहना है कि सरकार को वकीलों की समस्याओं को सुलझाने के लिए एक उचित मंच उपलब्ध कराना चाहिए था, लेकिन इसके बजाय वह उनकी हड़ताल और बहिष्कार के अधिकार पर रोक लगाने की तैयारी कर रही है। इतना ही नहीं, यदि वकील हड़ताल करते हैं तो उन पर आर्थिक दंड लगाने का भी प्रावधान इस विधेयक में जोड़ा गया है।
- बार काउंसिल में सरकारी हस्तक्षेप – इस विधेयक में सरकार को बार काउंसिल के कामकाज में सीधा हस्तक्षेप करने का अधिकार दिया गया है। सिंघवी का मानना है कि यह न केवल वकालत पेशे की स्वायत्तता पर सीधा हमला है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस विषय पर दिए गए फैसलों की भी अवहेलना करता है।
बार काउंसिल का विरोध
केवल कांग्रेस ही नहीं, बल्कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने भी इस विधेयक के मसौदे पर आपत्ति जताई है। बार काउंसिल के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को लिखे पत्र में इसे वकीलों की स्वतंत्रता पर हमला करार दिया है।
बार काउंसिल का मानना है कि इस विधेयक के जरिए सरकार बार की स्वायत्तता को खत्म करने का प्रयास कर रही है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने इस मसौदे से विवादास्पद प्रावधान नहीं हटाए, तो देशभर के वकील उग्र प्रदर्शन करने को मजबूर होंगे।
संक्षेप में, इस विधेयक के कारण वकीलों में जबरदस्त आक्रोश है। अगर सरकार ने उनकी चिंताओं को गंभीरता से नहीं लिया, तो आने वाले दिनों में देशभर में बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन देखने को मिल सकते हैं।