
पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के अखोरा खट्टक में स्थित दारुल उलूम हक्कानिया मदरसे में शुक्रवार को जुमे की नमाज के दौरान एक आत्मघाती विस्फोट हुआ। इस हमले में 16 लोगों की जान चली गई, जबकि कई अन्य घायल हो गए। मारे गए लोगों में जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम-समी (JUI-S) के प्रमुख मौलाना हमीदुल हक हक्कानी भी शामिल थे। वे पूर्व JUI-S प्रमुख और ‘तालिबान के जनक’ कहे जाने वाले मौलाना समीउल हक हक्कानी के बेटे थे।
स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, विस्फोट के समय मौलाना हमीदुल हक हक्कानी मस्जिद की पहली पंक्ति में मौजूद थे, जिससे संकेत मिलता है कि वे इस हमले के मुख्य निशाने पर थे। धमाके के बाद इलाके में अफरातफरी मच गई, और घायलों को तुरंत अस्पताल ले जाया गया।
आत्मघाती हमला और जांच
खैबर पख्तूनख्वा के पुलिस महानिरीक्षक (IGP) जुल्फिकार हमीद ने इस हमले को आत्मघाती हमला करार दिया और पुष्टि की कि इसका मुख्य निशाना मौलाना हमीदुल हक थे। सुरक्षा एजेंसियां इस घटना की जांच कर रही हैं ताकि हमले के पीछे के कारणों और साजिशकर्ताओं का पता लगाया जा सके।
दारुल उलूम हक्कानिया मदरसा कट्टर इस्लामी विचारधारा के लिए जाना जाता है और इसे तालिबान नेताओं के लिए एक प्रमुख शिक्षण संस्थान माना जाता है। इस हमले के बाद इलाके में सुरक्षा व्यवस्था को और कड़ा कर दिया गया है।
कौन थे मौलाना हमीदुल हक हक्कानी?
मौलाना हमीदुल हक हक्कानी न केवल एक धार्मिक नेता थे, बल्कि वे सांसद भी रह चुके थे। 2018 में अपने पिता मौलाना समीउल हक की हत्या के बाद उन्होंने जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम-समी (JUI-S) की कमान संभाली थी। उनके पिता को ‘फादर ऑफ तालिबान’ कहा जाता था, क्योंकि वे अफगान तालिबान के कट्टर समर्थक थे।
विवादों में दारुल उलूम हक्कानिया
साल 1947 में स्थापित यह मदरसा पाकिस्तान के सबसे प्रभावशाली इस्लामी शिक्षण संस्थानों में से एक है। इसे मौलाना समीउल हक के पिता, मौलाना अब्दुल हक हक्कानी ने स्थापित किया था। हालांकि, यह मदरसा कई बार विवादों में घिर चुका है। 2007 में पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या से जुड़े कुछ संदिग्धों का इस मदरसे से संबंध बताया गया था, हालांकि मदरसा प्रशासन ने इन आरोपों को खारिज किया था।
अफगान तालिबान से संबंध
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, इस मदरसे से पढ़े हुए कई छात्र अफगान तालिबान के शीर्ष नेतृत्व का हिस्सा रहे हैं। इनमें तालिबान सरकार के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी, अब्दुल लतीफ मंसूर, कुख्यात हक्कानी नेटवर्क के संस्थापक मुल्ला जलालुद्दीन हक्कानी, और पूर्व ग्वांतानामो बे कैदी खैरुल्लाह खैरख्वा जैसे नाम शामिल हैं।
दारुल उलूम हक्कानिया लंबे समय से पाकिस्तान और अफगानिस्तान की राजनीति, कट्टरपंथी गुटों और सुरक्षा एजेंसियों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। मौलाना हमीदुल हक हक्कानी की मौत के बाद यह संस्थान एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है।