23 जून 2025 को गुजरात की विसावदर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) के गोपाल इटालिया ने शानदार जीत हासिल की। इस जीत ने बीजेपी के गढ़ गुजरात में AAP की ताकत को फिर से साबित कर दिया। गोपाल इटालिया ने बीजेपी के उम्मीदवार किरीट पटेल को 17,581 वोट के बड़े अंतर से हराया, जिसने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी।
विसावदर सीट 2022 में AAP ने जीती थी, लेकिन विधायक भूपेंद्र भायाणी के बीजेपी में शामिल होने के बाद यह सीट खाली हो गई थी। दिल्ली में हालिया हार के बाद AAP के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का सवाल बन गई थी। गोपाल इटालिया, जो पहले AAP के गुजरात प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं, इस चुनौती को स्वीकार किया और किसानों के मुद्दों, स्थानीय समस्याओं और बीजेपी पर भ्रष्टाचार के आरोपों को जोर-शोर से उठाया।
शुरुआती रुझान: मतगणना के शुरुआती दौर में गोपाल इटालिया और किरीट पटेल के बीच कांटे की टक्कर थी। सातवें राउंड में बीजेपी के पटेल 985 वोटों से आगे थे, लेकिन इटालिया ने 17वें राउंड तक 14,404 वोटों की बढ़त बना ली।
अंतिम नतीजा: 21 राउंड की गिनती के बाद इटालिया को 75,906 वोट मिले, जबकि पटेल को 58,325 वोटों पर संतोष करना पड़ा। कांग्रेस के नितिन रणपरिया तीसरे स्थान पर रहे।
AAP ने चुनाव आयोग की घोषणा से पहले ही इटालिया को उम्मीदवार घोषित कर प्रचार में बढ़त बना ली। इटालिया ने गांव-गांव जाकर किसानों और स्थानीय लोगों से सीधा जुड़ाव बनाया।
विसावदर, जो पाटीदार बहुल और किसानों की समस्याओं से जूझता क्षेत्र है, बीजेपी के लिए 2007 से चुनौती बना हुआ है। इस बार भी बीजेपी ने सीएम भूपेंद्र पटेल और प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल के नेतृत्व में जोरदार प्रचार किया, लेकिन इटालिया की रणनीति और स्थानीय मुद्दों पर उनकी पकड़ भारी पड़ी। अरविंद केजरीवाल ने भी इटालिया के नामांकन के दौरान बीजेपी को खुली चुनौती दी थी, जिसका असर दिखा।
यह जीत AAP के लिए गुजरात में नई संभावनाएं खोलती है। दिल्ली और पंजाब के बाद गुजरात में पार्टी की यह जीत राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी राजनीति में उसकी स्थिति को मजबूत कर सकती है। कार्यकर्ताओं में जश्न का माहौल है, और सोशल मीडिया पर AAP समर्थकों ने इसे “बीजेपी के लिए सबक” करार दिया।
गोपाल इटालिया की इस जीत ने विसावदर में AAP का किला बरकरार रखा और बीजेपी को उसके गढ़ में करारा जवाब दिया। यह जीत न केवल स्थानीय मुद्दों पर केंद्रित रणनीति की जीत है, बल्कि गुजरात की राजनीति में बदलाव का संकेत भी देती है।

