भारत और चीन, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ का जवाब देने के लिए रणनीतिक कदम उठा रहे हैं, जिसमें रूस भी उनका साथ दे सकता है। हाल की एससीओ समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात ने इस सहयोग की मजबूत तस्वीर पेश की। इस दौरान व्यापार के लिए डॉलर के विकल्प के रूप में नया पेमेंट सिस्टम लाने पर चर्चा हुई, जो अमेरिकी वित्तीय प्रभुत्व को चुनौती दे सकता है।
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मत्तेओ माज्जियोरी के अनुसार, भारत और चीन वैकल्पिक भुगतान प्रणालियों पर काम कर रहे हैं ताकि अमेरिकी दबाव को कम किया जा सके और अपना प्रभाव बढ़ाया जा सके। यह कदम वैश्विक व्यापार में डॉलर के प्रभुत्व (2024 में 58% हिस्सा) को कमजोर कर सकता है, जो अमेरिका के लिए एक बड़ा झटका होगा।
अमेरिका ने भारत पर 50% और चीन पर 104% तक टैरिफ लगाया है, जिससे दोनों देशों का व्यापार प्रभावित हुआ है। जवाब में, भारत ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) के तहत अमेरिकी उत्पादों पर 1.91 अरब डॉलर का जवाबी टैरिफ लगाने की योजना बनाई है। इसके अलावा, भारत और चीन रूसी तेल खरीद जारी रखकर और क्षेत्रीय गठजोड़ों को मजबूत कर अमेरिका की रणनीति का मुकाबला कर रहे हैं।
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को चीन के साथ सहयोग में सतर्क रहना होगा, क्योंकि चीन इस स्थिति का अधिक फायदा उठा सकता है। भारत की घरेलू मांग-आधारित अर्थव्यवस्था और क्षेत्रीय गठजोड़ों पर ध्यान इस चुनौती से निपटने में मदद कर सकता है, लेकिन टैरिफ के प्रभाव को कम करने के लिए सस्ती ट्रेड फाइनैंसिंग और निर्यात प्रोत्साहन जैसे कदमों की जरूरत होगी।
इस तरह, भारत और चीन का यह संयुक्त प्रयास न केवल अमेरिकी टैरिफ का जवाब है, बल्कि वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में एक नया संतुलन स्थापित करने की दिशा में भी एक कदम है।

