राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने नागपुर में विजयादशमी उत्सव के साथ-साथ अपनी स्थापना का शताब्दी समारोह भी मनाया। इस अवसर पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने जनसभा को संबोधित करते हुए देश और समाज से जुड़े कई अहम मुद्दों पर विचार रखे।
उन्होंने अपने संबोधन की शुरुआत गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान को स्मरण करते हुए की और कहा कि उनका जीवन धार्मिक स्वतंत्रता, अन्याय के विरुद्ध संघर्ष और सामाजिक समरसता का प्रतीक है। साथ ही महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री को उनकी जयंती के अवसर पर श्रद्धांजलि देते हुए उनके विचारों और योगदान को भी याद किया।
भागवत ने अप्रैल में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले का ज़िक्र करते हुए बताया कि 26 हिंदू तीर्थयात्रियों की पहचान पूछ कर निर्मम हत्या कर दी गई थी। उन्होंने कहा कि इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया, लेकिन भारत सरकार की रणनीतिक प्रतिक्रिया, सेना की वीरता और समाज की एकता ने एक मजबूत संदेश दिया।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार और टैरिफ पर बोलते हुए भागवत ने अमेरिका की नई टैरिफ नीति का हवाला देते हुए कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में कोई भी देश अलग-थलग नहीं रह सकता। उन्होंने कहा कि भारत को आत्मनिर्भर बनना होगा और स्वदेशी को प्राथमिकता देनी चाहिए, लेकिन यह आत्मनिर्भरता किसी से दूरी बनाकर नहीं, बल्कि विश्व सहयोग के साथ होनी चाहिए।
उन्होंने जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं पर चिंता जताई। भागवत ने कहा कि भूस्खलन और अनियमित वर्षा अब सामान्य होते जा रहे हैं, और हिमालय की स्थिति विशेष रूप से गंभीर है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर विकास के वर्तमान मॉडल से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, तो उस पर पुनर्विचार ज़रूरी है। हिमालय केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए जल जीवन का स्रोत है और उसकी रक्षा अत्यंत आवश्यक है।
अपने विचारों को विस्तार देते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि भारत को समग्र और एकात्म दृष्टि से विकास का मार्ग चुनना होगा, जो केवल आर्थिक लाभ नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता और आध्यात्मिक मूल्यों पर आधारित हो। उन्होंने कहा कि आज की दुनिया केवल भौतिक सुखों के पीछे भाग रही है, जबकि भारत का धर्म सबको जोड़ने और समग्र उन्नति का मार्ग दिखाता है।
समाज में सेवा भाव और राष्ट्रभक्ति की भावना बढ़ने पर संतोष जताते हुए उन्होंने कहा कि संघ और अन्य सामाजिक संस्थाओं के कार्यों में युवाओं की भागीदारी में वृद्धि हो रही है। लोग अब स्वयं अपने समाज की समस्याओं के समाधान के लिए आगे आ रहे हैं, जो आत्मनिर्भरता का असली रूप है।
उन्होंने यह भी कहा कि भारत के पड़ोसी देशों में हाल के वर्षों में अस्थिरता बढ़ी है। श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों में सत्ता परिवर्तन और जन आक्रोश के उदाहरण सामने आए हैं, जो भारत के लिए चिंता का विषय हैं। उन्होंने आगाह किया कि भारत के भीतर भी अस्थिरता फैलाने वाली शक्तियां सक्रिय हैं, जिनसे सतर्क रहना आवश्यक है।
संबोधन के अंत में भागवत ने प्रयागराज महाकुंभ की सफलता का उल्लेख करते हुए कहा कि इस आयोजन ने न केवल प्रबंधन के नए मानक स्थापित किए, बल्कि देशभर में श्रद्धा और एकता की भावना को भी सशक्त किया।

