भारत और रूस के बीच नागरिक विमानन में एक अहम मोड़ आया है, जब भारत की HAL और रूस की UAC ने मॉस्को में एक समझौते (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं।
इस समझौते के तहत 95-110 सीट के क्षेत्रीय विमान SJ-100 को भारत में तैयार किया जाएगा, रूस की तकनीक व डिजाइन के साथ भारतीय उद्योग-शक्ति का मेल होगा।
क्या है SJ-100?
SJ‑100 मूल रूप से रूस में विकसित 100 सीट वाला क्षेत्रीय जेट विमान है, जो पहले “Sukhoi Superjet 100” नाम से जाना जाता था।
इसकी क्षमता 95-110 यात्रियों की है (निर्दिष्ट मॉडल और सीट कॉन्फ़िगरेशन के अनुसार)।
रूस-पश्चिम घटित परिवर्तन और प्रतिबंधों के बीच इस विमान को अधिक स्वदेशी व तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम किया गया है।
अब इस विमान के भारत में निर्माण से “मेक इन इंडिया” एविएशन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम होगा।
समझौते में क्या लिखा गया है?
HAL और UAC के बीच यह MoU मॉस्को में संपन्न हुआ, जिसमें भारत में SJ-100 का निर्माण, मज़बूत साझा उत्पादन व विकास शामिल हैं।
The Economic Times
समझौते का उद्देश्य है कि भारत में एक उत्पादन लाइन तैयार की जाए जहाँ विमान के असेंबली-मॉड्यूल, संभवतः कुछ मेनटेनेंस एवं स्पेयर पार्ट्स निर्माण समेत काम होगा।
यह कदम भारत के नागरिक विमानन बुनियादी ढाँचे को सशक्त बनाएगा, विमान निर्यात की संभावना को भी खोल सकता है।
भारत के लिए यह सिर्फ एक निर्माण समझौता नहीं है — यह नागरिक विमानन क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम है।
रूस के लिए, यह पश्चिमी प्रतिबंधों के माहौल में अपने विमान मॉडल को नए बाजार व उत्पादन केंद्रों से जोड़ने का अवसर है।
दोनों देशों के बीच तकनीकी-उद्योगिक सहयोग को एक नया रूप मिलेगा, जहाँ भारत का उद्योग-विकास, स्थानीय कौशल व रोजगार-सृजन समाहित होंगे।
इसके तहत भारत में वर्धित विमानन सप्लाई-चेन, उत्पादन क्षमता व निर्यात लिंक्स भी तैयार हो सकती हैं।
सकारात्मक प्रभाव
“मेक इन इंडिया” की दिशा में एक मजबूती: नागरिक विमान के निर्माण-शृंखला भारत में आने से स्थानीय उद्योग, पार्ट्स मैन्युफैक्चरिंग, असेंबली व भर्ती को बढ़ावा मिलेगा।
बेहतर विमान उपलब्धता: भारत के आंतरिक व क्षेत्रीय मार्गों में SJ-100 जैसे विमान के मिलने से किफायती व छोटे विमान उपलब्ध हो सकते हैं, जिससे नयी एयर लिंक खुल सकती हैं।
वैश्विक प्रतिस्पर्धा: भारत विमान निर्माण के क्षेत्र में खुद को स्थापित करने की दिशा में बढ़ेगा, यह आगे निर्यात का रास्ता खोल सकता है।
प्रमाणन एवं नियम-विनियमन: विदेशी डिजाइन व भारत में निर्माण को भारतीय नागरिक उड्डयन नियमों के अनुरूप प्रमाणित करना होगा।
उत्पादन-शृंखला: पर्याप्त स्तर पर स्थानीय सामग्री, स्पेयर-पार्ट्स व सप्लायर नेटवर्क तैयार करना होगा, और वैश्विक आपूर्ति-शृंखला दबाव का सामना करना होगा।
लागत व समय-सीमा: इस तरह का निर्माण समझौता समय एवं संसाधन लेगा, तथा लागत नियंत्रण व गुणवत्ता सुनिश्चित करना जरूरी होगा।
राजनीतिक एवं रक्षा-प्रभाव: विमान निर्माण-साझेदारी में सुरक्षा, रणनीतिक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण जैसे पहलुओं पर ध्यान देना होगा।
इस समझौते के राजनीतिक-सामरिक आयाम भी हैं। भारत का विमान निर्माण-क्षेत्र में आगे बढ़ना और नागरिक विमानन में आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ता कदम, क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा पर असर डालता है। पाकिस्तान जैसे देश जिन्हें विमानन स्कीम, उत्पादन-संरचना और विदेशी विमान पर निर्भरता अधिक है, वहाँ यह भारत के लिए एक प्रत्यक्ष सामरिक व आर्थिक बढ़त माना जा सकता है।
इसके अलावा, भारत-रूस का साझेदारी वैश्विक व क्षेत्रीय विमानन-सहयोग में एक संकेत है कि भारत सिर्फ आयातक नहीं बल्कि निर्माणकर्ता प्रदेश बनने की दिशा में है — यह अन्य दक्षिण एशियाई मुल्कों को भी एक नया प्रतिस्पर्धात्मक माहौल दे सकता है।
अगला कदम होगा तकनीकी-समझौते का विस्तार, उत्पादन सुविधा की स्थापना और भारत में असेंबली-लाइन चलाना।
समय-सीमा तय होगी कि भारत में कब से इस विमान का असेंबली शुरू होगा, कब परीक्षण व प्रमाणन पूरे होंगे।
एयरलाइंस व निवेशकों के साथ समझौते होंगे कि वे इस विमान को अपनी बेड़े में शामिल करें।
सरकार तथा उद्योग द्वारा स्थानीय सप्लायर नेटवर्क तैयार करना होगा, ताकि उप-उद्योग एवं पार्ट्स निर्माण में बढ़ोतरी हो सके।भारत और रूस के बीच नागरिक विमानन में एक अहम मोड़ आया है, जब भारत की HAL और रूस की UAC ने मॉस्को में एक समझौते (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं।
इस समझौते के तहत 95-110 सीट के क्षेत्रीय विमान SJ-100 को भारत में तैयार किया जाएगा, रूस की तकनीक व डिजाइन के साथ भारतीय उद्योग-शक्ति का मेल होगा।
क्या है SJ-100?
SJ‑100 मूल रूप से रूस में विकसित 100 सीट वाला क्षेत्रीय जेट विमान है, जो पहले “Sukhoi Superjet 100” नाम से जाना जाता था।
इसकी क्षमता 95-110 यात्रियों की है (निर्दिष्ट मॉडल और सीट कॉन्फ़िगरेशन के अनुसार)।
रूस-पश्चिम घटित परिवर्तन और प्रतिबंधों के बीच इस विमान को अधिक स्वदेशी व तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम किया गया है।
अब इस विमान के भारत में निर्माण से “मेक इन इंडिया” एविएशन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम होगा।
समझौते में क्या लिखा गया है?
HAL और UAC के बीच यह MoU मॉस्को में संपन्न हुआ, जिसमें भारत में SJ-100 का निर्माण, मज़बूत साझा उत्पादन व विकास शामिल हैं।
The Economic Times
समझौते का उद्देश्य है कि भारत में एक उत्पादन लाइन तैयार की जाए जहाँ विमान के असेंबली-मॉड्यूल, संभवतः कुछ मेनटेनेंस एवं स्पेयर पार्ट्स निर्माण समेत काम होगा।
यह कदम भारत के नागरिक विमानन बुनियादी ढाँचे को सशक्त बनाएगा, विमान निर्यात की संभावना को भी खोल सकता है।
भारत के लिए यह सिर्फ एक निर्माण समझौता नहीं है — यह नागरिक विमानन क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम है।
रूस के लिए, यह पश्चिमी प्रतिबंधों के माहौल में अपने विमान मॉडल को नए बाजार व उत्पादन केंद्रों से जोड़ने का अवसर है।
दोनों देशों के बीच तकनीकी-उद्योगिक सहयोग को एक नया रूप मिलेगा, जहाँ भारत का उद्योग-विकास, स्थानीय कौशल व रोजगार-सृजन समाहित होंगे।
इसके तहत भारत में वर्धित विमानन सप्लाई-चेन, उत्पादन क्षमता व निर्यात लिंक्स भी तैयार हो सकती हैं।
सकारात्मक प्रभाव
“मेक इन इंडिया” की दिशा में एक मजबूती: नागरिक विमान के निर्माण-शृंखला भारत में आने से स्थानीय उद्योग, पार्ट्स मैन्युफैक्चरिंग, असेंबली व भर्ती को बढ़ावा मिलेगा।
बेहतर विमान उपलब्धता: भारत के आंतरिक व क्षेत्रीय मार्गों में SJ-100 जैसे विमान के मिलने से किफायती व छोटे विमान उपलब्ध हो सकते हैं, जिससे नयी एयर लिंक खुल सकती हैं।
वैश्विक प्रतिस्पर्धा: भारत विमान निर्माण के क्षेत्र में खुद को स्थापित करने की दिशा में बढ़ेगा, यह आगे निर्यात का रास्ता खोल सकता है।
प्रमाणन एवं नियम-विनियमन: विदेशी डिजाइन व भारत में निर्माण को भारतीय नागरिक उड्डयन नियमों के अनुरूप प्रमाणित करना होगा।
उत्पादन-शृंखला: पर्याप्त स्तर पर स्थानीय सामग्री, स्पेयर-पार्ट्स व सप्लायर नेटवर्क तैयार करना होगा, और वैश्विक आपूर्ति-शृंखला दबाव का सामना करना होगा।
लागत व समय-सीमा: इस तरह का निर्माण समझौता समय एवं संसाधन लेगा, तथा लागत नियंत्रण व गुणवत्ता सुनिश्चित करना जरूरी होगा।
राजनीतिक एवं रक्षा-प्रभाव: विमान निर्माण-साझेदारी में सुरक्षा, रणनीतिक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण जैसे पहलुओं पर ध्यान देना होगा।
इस समझौते के राजनीतिक-सामरिक आयाम भी हैं। भारत का विमान निर्माण-क्षेत्र में आगे बढ़ना और नागरिक विमानन में आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ता कदम, क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा पर असर डालता है। पाकिस्तान जैसे देश जिन्हें विमानन स्कीम, उत्पादन-संरचना और विदेशी विमान पर निर्भरता अधिक है, वहाँ यह भारत के लिए एक प्रत्यक्ष सामरिक व आर्थिक बढ़त माना जा सकता है।
इसके अलावा, भारत-रूस का साझेदारी वैश्विक व क्षेत्रीय विमानन-सहयोग में एक संकेत है कि भारत सिर्फ आयातक नहीं बल्कि निर्माणकर्ता प्रदेश बनने की दिशा में है — यह अन्य दक्षिण एशियाई मुल्कों को भी एक नया प्रतिस्पर्धात्मक माहौल दे सकता है।
अगला कदम होगा तकनीकी-समझौते का विस्तार, उत्पादन सुविधा की स्थापना और भारत में असेंबली-लाइन चलाना।
समय-सीमा तय होगी कि भारत में कब से इस विमान का असेंबली शुरू होगा, कब परीक्षण व प्रमाणन पूरे होंगे।
एयरलाइंस व निवेशकों के साथ समझौते होंगे कि वे इस विमान को अपनी बेड़े में शामिल करें।
भारत और रूस के बीच नागरिक विमानन में एक अहम मोड़ आया है, जब भारत की HAL और रूस की UAC ने मॉस्को में एक समझौते (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं।
इस समझौते के तहत 95-110 सीट के क्षेत्रीय विमान SJ-100 को भारत में तैयार किया जाएगा, रूस की तकनीक व डिजाइन के साथ भारतीय उद्योग-शक्ति का मेल होगा।
क्या है SJ-100?
SJ‑100 मूल रूप से रूस में विकसित 100 सीट वाला क्षेत्रीय जेट विमान है, जो पहले “Sukhoi Superjet 100” नाम से जाना जाता था।
इसकी क्षमता 95-110 यात्रियों की है (निर्दिष्ट मॉडल और सीट कॉन्फ़िगरेशन के अनुसार)।
रूस-पश्चिम घटित परिवर्तन और प्रतिबंधों के बीच इस विमान को अधिक स्वदेशी व तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम किया गया है।
अब इस विमान के भारत में निर्माण से “मेक इन इंडिया” एविएशन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम होगा।
समझौते में क्या लिखा गया है?
HAL और UAC के बीच यह MoU मॉस्को में संपन्न हुआ, जिसमें भारत में SJ-100 का निर्माण, मज़बूत साझा उत्पादन व विकास शामिल हैं।
The Economic Times
समझौते का उद्देश्य है कि भारत में एक उत्पादन लाइन तैयार की जाए जहाँ विमान के असेंबली-मॉड्यूल, संभवतः कुछ मेनटेनेंस एवं स्पेयर पार्ट्स निर्माण समेत काम होगा।
यह कदम भारत के नागरिक विमानन बुनियादी ढाँचे को सशक्त बनाएगा, विमान निर्यात की संभावना को भी खोल सकता है।
भारत के लिए यह सिर्फ एक निर्माण समझौता नहीं है — यह नागरिक विमानन क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम है।
रूस के लिए, यह पश्चिमी प्रतिबंधों के माहौल में अपने विमान मॉडल को नए बाजार व उत्पादन केंद्रों से जोड़ने का अवसर है।
दोनों देशों के बीच तकनीकी-उद्योगिक सहयोग को एक नया रूप मिलेगा, जहाँ भारत का उद्योग-विकास, स्थानीय कौशल व रोजगार-सृजन समाहित होंगे।
इसके तहत भारत में वर्धित विमानन सप्लाई-चेन, उत्पादन क्षमता व निर्यात लिंक्स भी तैयार हो सकती हैं।
सकारात्मक प्रभाव
“मेक इन इंडिया” की दिशा में एक मजबूती: नागरिक विमान के निर्माण-शृंखला भारत में आने से स्थानीय उद्योग, पार्ट्स मैन्युफैक्चरिंग, असेंबली व भर्ती को बढ़ावा मिलेगा।
बेहतर विमान उपलब्धता: भारत के आंतरिक व क्षेत्रीय मार्गों में SJ-100 जैसे विमान के मिलने से किफायती व छोटे विमान उपलब्ध हो सकते हैं, जिससे नयी एयर लिंक खुल सकती हैं।
वैश्विक प्रतिस्पर्धा: भारत विमान निर्माण के क्षेत्र में खुद को स्थापित करने की दिशा में बढ़ेगा, यह आगे निर्यात का रास्ता खोल सकता है।
प्रमाणन एवं नियम-विनियमन: विदेशी डिजाइन व भारत में निर्माण को भारतीय नागरिक उड्डयन नियमों के अनुरूप प्रमाणित करना होगा।
उत्पादन-शृंखला: पर्याप्त स्तर पर स्थानीय सामग्री, स्पेयर-पार्ट्स व सप्लायर नेटवर्क तैयार करना होगा, और वैश्विक आपूर्ति-शृंखला दबाव का सामना करना होगा।
लागत व समय-सीमा: इस तरह का निर्माण समझौता समय एवं संसाधन लेगा, तथा लागत नियंत्रण व गुणवत्ता सुनिश्चित करना जरूरी होगा।
राजनीतिक एवं रक्षा-प्रभाव: विमान निर्माण-साझेदारी में सुरक्षा, रणनीतिक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण जैसे पहलुओं पर ध्यान देना होगा।
इस समझौते के राजनीतिक-सामरिक आयाम भी हैं। भारत का विमान निर्माण-क्षेत्र में आगे बढ़ना और नागरिक विमानन में आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ता कदम, क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा पर असर डालता है। पाकिस्तान जैसे देश जिन्हें विमानन स्कीम, उत्पादन-संरचना और विदेशी विमान पर निर्भरता अधिक है, वहाँ यह भारत के लिए एक प्रत्यक्ष सामरिक व आर्थिक बढ़त माना जा सकता है।
इसके अलावा, भारत-रूस का साझेदारी वैश्विक व क्षेत्रीय विमानन-सहयोग में एक संकेत है कि भारत सिर्फ आयातक नहीं बल्कि निर्माणकर्ता प्रदेश बनने की दिशा में है — यह अन्य दक्षिण एशियाई मुल्कों को भी एक नया प्रतिस्पर्धात्मक माहौल दे सकता है।
अगला कदम होगा तकनीकी-समझौते का विस्तार, उत्पादन सुविधा की स्थापना और भारत में असेंबली-लाइन चलाना।
समय-सीमा तय होगी कि भारत में कब से इस विमान का असेंबली शुरू होगा, कब परीक्षण व प्रमाणन पूरे होंगे।
एयरलाइंस व निवेशकों के साथ समझौते होंगे कि वे इस विमान को अपनी बेड़े में शामिल करें।
सरकार तथा उद्योग द्वारा स्थानीय सप्लायर नेटवर्क तैयार करना होगा, ताकि उप-उद्योग एवं पार्ट्स निर्माण में बढ़ोतरी हो सके।सरकार तथा उद्योग द्वारा स्थानीय सप्लायर नेटवर्क तैयार करना होगा, ताकि उप-उद्योग एवं पार्ट्स निर्माण में बढ़ोतरी हो सके।

