बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने एक बार फिर राजनीति का रुख बदल दिया है। जनता ने बड़ा जनादेश देते हुए एनडीए को स्पष्ट बहुमत दिया है और 243 में से 202 सीटों पर जीत दिलाई है। इस जीत ने यह साफ कर दिया है कि लोगों ने एक बार फिर नीतीश कुमार पर भरोसा जताया है और अब चर्चा तेज है कि क्या वे 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। हालांकि अभी तक आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन मौजूदा राजनीतिक माहौल और नतीजों को देखते हुए साफ है कि अगले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे।
नीतीश कुमार ने जनता का धन्यवाद करते हुए कहा है कि लोग जिस तरह भरोसा कर रहे हैं, वे आने वाले समय में बिहार को देश के सबसे विकसित राज्यों की कतार में खड़ा करने की कोशिशों को तेज करेंगे। 10वीं बार शपथ लेने से पहले यह जानना जरूरी है कि वे पिछली 9 बार कब और कैसे बिहार के मुख्यमंत्री बने और हर कार्यकाल में उनकी राजनीतिक यात्रा कैसी रही।
नीतीश कुमार की मुख्यमंत्री बनने की शुरुआत साल 2000 में हुई। 3 मार्च 2000 को वे पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने, लेकिन बहुमत न होने के कारण उनकी सरकार सिर्फ 7 दिन चली और 10 मार्च को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। यह छोटा कार्यकाल भले ही सफल नहीं रहा, लेकिन इसने उन्हें राज्य की राजनीति में एक मजबूत दावेदार के रूप में स्थापित कर दिया।
इसके बाद 2005 के विधानसभा चुनाव में एनडीए ने जीत दर्ज की और नीतीश कुमार ने पहली बार पूरा मुख्यमंत्री कार्यकाल पूरा किया। 2005 से 2010 तक के इस कार्यकाल में उन्होंने कानून-व्यवस्था, सड़क, बिजली, शिक्षा और महिलाओं के लिए योजनाओं पर काम कर अपनी पहचान ‘सुशासन बाबू’ के रूप में बनाई। इसी अवधि में लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता सबसे ज्यादा बढ़ी।
2010 में जनता ने एक बार फिर उन पर भरोसा किया और वे तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू के खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने नैतिक आधार पर इस्तीफा दे दिया। यह कदम उनकी राजनीतिक शैली का बड़ा उदाहरण माना गया।
इस्तीफे के बाद 2014 में उन्होंने जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन दोनों के बीच मतभेद बढ़ गए और फरवरी 2015 में मांझी के इस्तीफे के बाद नीतीश दोबारा मुख्यमंत्री बने। यह कार्यकाल छोटा रहा क्योंकि उसी साल विधानसभा चुनाव होने थे, लेकिन इस दौरान उन्होंने पार्टी पर अपना नियंत्रण मजबूत बनाए रखा।
साल 2015 के चुनाव में आरजेडी-जेडीयू-कांग्रेस महागठबंधन को बड़ी जीत मिली और नीतीश कुमार एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए। लेकिन गठबंधन में खींचतान और भ्रष्टाचार के आरोपों ने सरकार की स्थिति कमजोर कर दी। इसके बाद जुलाई 2017 में उन्होंने अचानक इस्तीफा दे दिया और यह राजनीतिक रूप से उनका सबसे चौंकाने वाला कदम माना गया।
इस्तीफे के तुरंत बाद उन्होंने फिर से बीजेपी का साथ लिया और एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए। जुलाई 2017 से नवंबर 2020 तक उन्होंने एनडीए सरकार का नेतृत्व किया। यह उनकी राजनीतिक व्यवहारिकता का उदाहरण माना गया, जहां उन्होंने स्थिर सरकार को प्राथमिकता दी।
2020 के चुनाव में जेडीयू का प्रदर्शन कमजोर रहा, लेकिन एनडीए सत्ता में लौट आई और वे सातवीं बार मुख्यमंत्री बने। इस बार हालांकि उनकी कुर्सी पहले जितनी मजबूत नहीं मानी जा रही थी, लेकिन उनका अनुभव और गठबंधन राजनीति को संभालने की क्षमता उनके पक्ष में रही।
इसके बाद अगस्त 2022 में उन्होंने एक और बड़ा राजनीतिक फैसला किया और एनडीए से अलग होकर आरजेडी-कांग्रेस के साथ महागठबंधन बना लिया। उन्होंने बीजेपी पर आरोप लगाया कि वह जेडीयू को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। इस दौरान वे आठवीं बार मुख्यमंत्री बने।
जनवरी 2024 में परिस्थितियाँ फिर बदलीं और उन्होंने महागठबंधन छोड़कर एनडीए में वापसी कर ली। फिर उन्होंने नौवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इस दौरान उन पर आरोप लगे कि वे सत्ता के लिए पाला बदलते हैं, लेकिन कई विश्लेषकों के अनुसार यह उनके अनुभव और गठबंधन राजनीति में महारत का हिस्सा है, जिसके जरिए वे प्रशासनिक स्थिरता बनाए रखने की कोशिश करते हैं।
अब 2025 के जनादेश के साथ नीतीश कुमार का 10वीं बार मुख्यमंत्री बनना लगभग तय माना जा रहा है। बिहार की राजनीति में उनकी यात्रा यह बताती है कि वे चुनौतियों, बदलते गठबंधनों और अस्थिर परिस्थितियों के बावजूद लगातार नेता के रूप में अपनी भूमिका निभाते रहे हैं। जनता ने इस बार फिर उनके नेतृत्व को सही ठहराया है और बिहार की कमान एक बार फिर उन्हीं के हाथों में जाने की संभावना है।

