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यूपी में नया भाजपा अध्यक्ष कौन? हाईकमान की तलाश में अनुभव, जाति और भरोसा तीनों अहम

उत्तर प्रदेश में भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष की तलाश इन दिनों पार्टी नेतृत्व की सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिकताओं में शामिल है। इस बार हाईकमान ऐसा चेहरा चुनना चाहता है जो संगठन और सरकार दोनों के बीच संतुलन बनाकर चल सके। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि 2024 लोकसभा चुनाव में यूपी की सीटें 62 से घटकर 33 होने के बाद यह स्पष्ट हो गया कि संगठन और सरकार के बीच किसी भी तरह की खींचतान चुनावी प्रदर्शन को सीधा प्रभावित कर सकती है।

पार्टी सूत्रों के मुताबिक, नया अध्यक्ष चुनने में जातीय समीकरण, संगठनात्मक अनुभव, और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ तालमेल को इस बार सबसे अहम शर्त माना जा रहा है। नेतृत्व इस बात पर विशेष ध्यान दे रहा है कि न तो संगठन सरकार पर हावी दिखे और न ही सरकार संगठन के ऊपर। दोनों के बीच संतुलन की कमी को जमीनी स्तर पर गुटबाजी और कार्यकर्ताओं की अनदेखी का कारण माना गया है, जिससे पार्टी को नुकसान झेलना पड़ सकता है।

पार्टी से जुड़े एक सांसद के अनुसार, हाईकमान ऐसा प्रदेश अध्यक्ष चाहता है जो योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली का “पूरक” बने—न कि कोई समानांतर शक्ति केंद्र। ऐसे नेता से दोहरी भूमिका निभाने की उम्मीद होगी:

  • सरकारी योजनाओं का जमीनी स्तर पर प्रभावी क्रियान्वयन
  • पार्टी संगठन को मजबूत करना और कार्यकर्ताओं को सक्रिय बनाए रखना

यह जरूरत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आने वाले समय में पंचायत चुनाव और फिर 2027 के विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं, जहां भाजपा को आक्रामक समाजवादी पार्टी और कांग्रेस से मुकाबला करना है।

हालांकि पार्टी के भीतर इस चयन को लेकर कुछ चिंताएं भी हैं। एक सांसद का कहना है कि अगर नया अध्यक्ष सरकार के अत्यधिक करीब हुआ तो कार्यकर्ताओं में टॉप-डाउन कंट्रोल का डर बढ़ेगा, वहीं कमजोर तालमेल पुरानी तनातनी को फिर से हवा दे सकता है। इसलिए ऐसा चेहरा चुना जाना जरूरी है जो न सिर्फ संतुलित नेतृत्व दे सके, बल्कि जमीनी कार्यकर्ताओं का स्वाभाविक भरोसा भी जीत सके।

इसी कारण भाजपा ऐसे “मूल कार्यकर्ता” को आगे लाने पर भी विचार कर रही है, जिसका गहरा संगठनात्मक अनुभव, आरएसएस पृष्ठभूमि, और पार्टी से वर्षों का जुड़ाव रहा हो। विश्लेषक इसे भाजपा का वह संदेश मानते हैं जिसमें कहा जा रहा है कि पार्टी की रीढ़ उसका जमीनी कैडर है।

साथ ही जातीय समीकरणों पर भी गहन मंथन जारी है। भाजपाई रणनीतिकार यह तय करने में लगे हैं कि कौन-सा चेहरा एसपी के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) नैरेटिव का प्रभावी जवाब दे सकता है। 2024 चुनाव में गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित मतदाताओं में दिखी नाराज़गी ने पार्टी को सोचने पर मजबूर किया है।

ब्राह्मण, ओबीसी और दलित—सभी प्रमुख सामाजिक वर्गों से नामों पर विचार हो रहा है। अंतिम चयन इस संतुलन पर निर्भर करेगा कि कौन-सा नेता संगठन को ऊर्जावान कर सकता है, सरकार के साथ तालमेल बनाए रख सकता है और आगामी चुनावी चुनौतियों में पार्टी को बढ़त दिला सकता है।

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