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ख़ास चेहरा – जूतों की दुकान पर बैठने वाला यह लड़का कैसे बना आईएएस अधिकारी

ख़ास चेहरा – हर माँ बाप की इक्षा होती है की उनके बच्चे IAS ,IPS बन कर देश की सेवा करे, लेकिन देश में बहुत से बच्चो के जीवन में बचपन कम समय के लिए आता है या आता ही नहीं. वे जिम्मेदारियों के चलते कम उम्र में ही इस कदर दब जाते हैं कि उनके पास हमउम्र बच्चों के जैसा करने को कुछ नहीं होता. कई बार यह बच्चों को खुद का चुनाव भी होता है कि वे क्या चाहते हैं, क्या वे परिवार की मदद को आगे आना चाहते हैं या जो जैसा चल रहा है उसी का हिस्सा बनकर रह जाते हैं.

शुभम के पास भी च्वॉइस थी. उनके परिवार ने कभी उन्हें जिम्मेदारियों की भट्टी में नहीं झोंका लेकिन परिवार के हालात समझते हुए उन्होंने खुद यह निर्णय लिया और बन गये परिवार का संबल. एआईआर रैंक 6 पाने वाले शुभम गुप्ता की कहानी जिनका बचपन भी जिम्मेदारियां निभाते बीता पर वे कभी हताश नहीं हुए.

शुभम की प्रारंभिक शिक्षा जयपुर से हुई पर काम के सिलसिले में उनके पिताजी को महाराष्ट्र में घर लेना पड़ा. अपने तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे शुभम और उनकी बहन भाग्यश्री का स्कूल उनके घर से काफी दूर था. स्कूल पहुंचने के लिये उन्हें रोज सुबह ट्रेन पकड़नी पड़ती थी. वापस आते शाम के तीन बजते थे. उनके पिताजी का जूतों का काम था. आर्थिक तंगी के दिन थे और शुभम को लगा कि चूंकि बड़े भाई कृष्णा आईआईटी की तैयारी के लिये घर से दूर हैं तो यह उनकी जिम्मेदारी बनती हैं कि वे पिताजी की मदद करें. शुभम स्कूल से आने के बाद चार बजे तक दुकान पहुंच जाते थे और रात तक वहीं रहते थे. यहीं वो समय निकालकर पढ़ाई भी करते थे. इस समय शुभम 8वीं कक्षा में थे. 8वीं कक्षा से 12वीं कक्षा तक यानी पांच साल उन्होंने ऐसे ही जीवन जिया. इसी वजह से न उनको दोस्त बने, न उन्होंने कोई स्पोर्ट खेला, क्योंकि उनके पास इन सब के लिये उन्हें कभी समय ही नहीं मिला।

शुभम का दसवीं का रिजल्ट आया तो उन्होंने बहुत ही अच्छे अंक पाए थे. सबने सलाह दी कि साइंस चुनो पर उन्हें कॉमर्स पसंद थी. 12वीं के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वे दिल्ली आ गए. यहां वे श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में एडमीशन लेना चाहते थे, जो किसी कारण से नहीं हो पाया. इससे वे काफी हताश हुए. तब उनके बड़े भाई ने हमेशा की तरह उन्हें समझाया कि जहां एडमीशन मिला है, वहीं अच्छा करो. शुभम ने ऐसा ही किया. इसके बाद उन्होंने दिल्ली के एक कॉलेज से बी.कॉम और उसके बाद एम.कॉम पूरा किया. इसके बाद उन्होंने सिविल सर्विसेस में जाने का मन बनाया. दरअसल गहराई में जायें तो उनके पिता के जीवन में कई बार ऐसी स्थितियां आयीं कि उन्हें लगा कि काश उनका बच्चा अफसर बने. उन्होंने एक बार शुभम से यूं ही कह दिया की तुम कलेक्टर बन जाओ. तब से शुभम के मन में आईएएस ऑफिसर बनने की एक दबी इच्छी थी, जिस पर समय आने पर उन्होंने काम करना शुरू किया. उन्हें सफलता भी मिली और आज उसी कॉलेज से उनके लिये सेमिनार में बोलने का न्यौता आया जहां कभी उन्हें एडमीशन नहीं मिल पाया था.

शुभम ने सबसे पहली बार 2015 में प्रयास किया पर प्री भी पास नहीं कर पाये. दूसरे प्रयास में शुभम का सेलेक्शन हो गया पर उन्हें रैंक मिली 366. इसके अंतर्गत मिलने वाले पद से वे संतुष्ट नहीं थे. उन्हें इंडियन ऑडिट और एकाउंट सर्विस में चुना गया था जहां उनका मन नहीं भरा. इसलिये उन्होंने तीसरी बार साल 2017 में फिर परीक्षा दी. इस साल भी उनका कहीं चयन नहीं हुआ. इतनी बार हार का सामने करने के बावजूद भी शुभम का हौंसला कम नहीं हुआ और दोगुनी मेहनत से उन्होंने तैयारी की. इसी का परिणाम था कि चौथे प्रयास में शुभम न केवल सभी चरणों से सेलेक्ट हुये बल्कि उन्होंने 6वीं रैंक भी हासिल की. शुभम ने अपनी पिछली गलतियों से सबक लिया और हिम्म्त हारने के बजाय डबल जोश के साथ परीक्षा दी. अपनी सालों की मेहनत का फल आखिरकार उन्हें मिला और उनका और उनके पिताजी का सपना साकार हुआ.

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