google.com, pub-6869376288469938, DIRECT, f08c47fec0942fa0
Posted By : Admin

शहरी घरों के निर्माण से प्रदूषण में इजाफा, कानपुर और श्रीनगर सहित 29 शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ा

प्रदूषण की समस्या केवल दिल्ली-एनसीआर तक ही सीमित नहीं है, बल्कि देश के अन्य छोटे और बड़े शहर भी इसके प्रभाव से प्रभावित हो रहे हैं। हाल ही में किए गए दो अलग-अलग अध्ययनों में यह तथ्य सामने आया है कि बढ़ते प्रदूषण में शहरी घरों का भी बड़ा हाथ है। इन अध्ययनों के मुताबिक, शहरी इलाकों में वायु गुणवत्ता को खराब करने में शहरी घर भी ट्रांसपोर्ट और पावर सेक्टर जैसे अन्य प्रमुख क्षेत्रों के बराबर योगदान दे रहे हैं।

पिछले महीने प्रमुख वैज्ञानिक जर्नल्स में प्रकाशित शोध पत्रों में शहरी इलाकों में सूक्ष्म कण पदार्थ (पीएम 2.5) के स्रोतों और घरेलू ईंधन के उपयोग से होने वाले उत्सर्जन पर अध्ययन किया गया। इनमें से एक शोध पुणे के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी (IITM) और आईआईटी रुड़की द्वारा किए गए मॉडलिंग अध्ययन से संबंधित था।

दिल्ली की वायु गुणवत्ता में ट्रांसपोर्ट का योगदान IITM के वैज्ञानिक राजमल जाट ने TOI से कहा, “हमने अपने अध्ययन में पाया कि श्रीनगर, कानपुर और प्रयागराज जैसे 29 शहरों में आवासीय उत्सर्जन का स्तर पीएम 2.5 प्रदूषण में प्रमुख भूमिका निभाता है। वहीं, दिल्ली सहित 9 शहरों में ट्रांसपोर्ट का योगदान वायु गुणवत्ता को खराब करने में सबसे बड़ा था, जहां गाड़ियों से निकलने वाले धुएं का पीएम 2.5 प्रदूषण में 55% हिस्सा था।”

दूसरे अध्ययन में, ओडिशा स्थित बरहामपुर विश्वविद्यालय और बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) ने 2020 के लिए एक उच्च-रिज़ॉल्यूशन उत्सर्जन सूची तैयार की, जिसमें गाड़ियों से निकलने वाले धुएं को हवा में नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और वोलाटाइल ऑर्गेनिक कम्पाउंड्स (VOC) के प्रमुख स्रोत के रूप में दिखाया गया, जबकि आवासीय गतिविधियां कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) उत्सर्जन के लिए अधिक जिम्मेदार पाई गईं।

53 शहरों में हवा की गुणवत्ता पर अध्ययन IITM और IIT रुड़की के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला कि 53 शहरों में पीएम 2.5 प्रदूषण के विश्लेषण से यह सामने आया कि प्रदूषण का बड़ा हिस्सा आवासीय ईंधन के इस्तेमाल और गाड़ियों से निकलने वाले धुएं से हो रहा है। वहीं, बरहामपुर विश्वविद्यालय और IISc के अध्ययन में 4 साल पुराने उत्सर्जन डेटा का विश्लेषण किया गया, जबकि IITM-IIT ने अपने अध्ययन के लिए 2015-16 के बीच के सिमुलेशन का उपयोग किया। वैज्ञानिकों का कहना है कि इनके निष्कर्ष अभी भी प्रासंगिक हैं, हालांकि समय के साथ उत्सर्जन के स्तर में बदलाव हो सकते हैं, लेकिन कई शहरों में प्रदूषण के स्रोतों में कोई बड़ा बदलाव होने की संभावना नहीं है।

कानपुर और वाराणसी में ‘घर’ का योगदान वैज्ञानिक जाट ने कहा, “उत्तर भारत के शहरों में ट्रांसपोर्ट पीएम 2.5 स्तर के प्रदूषण में प्रमुख योगदानकर्ता के रूप में सामने आया, जैसे दिल्ली में यह प्रदूषण का आधे से ज्यादा हिस्सा और अमृतसर, लुधियाना और गाजियाबाद जैसे शहरों में यह 38-47% के बीच था। जबकि श्रीनगर (68%), कानपुर और वाराणसी जैसे शहरों में प्रदूषण के लिए आवासीय क्षेत्र सबसे ज्यादा जिम्मेदार था, जहां घरेलू गतिविधियों के कारण हवा की गुणवत्ता खराब हो रही थी।”

पश्चिमी भारत में अहमदाबाद और वसई विरार के कुछ हिस्सों में प्रदूषण का मुख्य कारण औद्योगिक क्षेत्र था, जबकि सूरत, नासिक और नागपुर में ऊर्जा स्रोतों का प्रभाव ज्यादा था। उदाहरण के तौर पर, अहमदाबाद और ग्रेटर मुंबई में इंडस्ट्री क्षेत्र ने पीएम 2.5 प्रदूषण में करीब आधा योगदान दिया, जबकि नासिक और सूरत में ऊर्जा क्षेत्र ने 38-44% प्रदूषण का जिम्मा लिया।

कुल मिलाकर, पश्चिमी और दक्षिणी भारत में आवासीय क्षेत्र 13 शहरों में प्रदूषण फैलाने का मुख्य कारण था, जबकि 8 शहरों में औद्योगिक क्षेत्र और 4 शहरों में ऊर्जा क्षेत्र प्रदूषण के प्रमुख स्रोत थे। जाट ने कहा, “पुणे जैसे पश्चिमी भारत के शहरों में औद्योगिक क्षेत्र ने पीएम 2.5 प्रदूषण में सबसे बड़ा योगदान दिया, जहां इंडस्ट्री का योगदान लगभग 39% था, जबकि आवासीय क्षेत्र 27% के साथ दूसरे स्थान पर था।”

Share This