केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को हाल ही में बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। यह नियुक्ति राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा मंगलवार शाम की गई राज्यपालों की नियुक्तियों के तहत की गई, जिसमें अजय कुमार भल्ला को मणिपुर, जनरल वीके सिंह को मिजोरम और हरि बाबू को ओडिशा का राज्यपाल नियुक्त किया गया। आरिफ मोहम्मद खान को बिहार का राज्यपाल बनने से उनके लिए एक और कार्यकाल मिल गया है। यह सवाल उठता है कि आखिर बीजेपी आरिफ मोहम्मद खान को इतना क्यों पसंद करती है?
आरिफ मोहम्मद खान का जन्म बुलंदशहर के मोहम्मदपुर बरनाला में हुआ था, और उन्होंने अपने छात्र जीवन से ही राजनीति में कदम रखा। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान वह छात्र संघ के महासचिव और फिर अध्यक्ष बने। आपातकाल के खिलाफ उन्होंने इंदिरा गांधी की सरकार की आलोचना की और इसके चलते उन्हें 19 महीने जेल की सजा भी हुई। जेल से बाहर आकर 26 साल की उम्र में उन्होंने जनता पार्टी से सियाना विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और कांग्रेस के मुमताज खान को हराया, जिसके बाद उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ।
आरिफ मोहम्मद खान की राजनीतिक यात्रा में कई महत्वपूर्ण मोड़ आए। आपातकाल के बाद वह कांग्रेस से जुड़ गए, और 1980 में कानपुर से लोकसभा सांसद बने। इसके बाद वह राजीव गांधी के मंत्रीमंडल में शामिल हुए, लेकिन शाहबानो मामले में राजीव गांधी के फैसले से असहमत होकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वह कांग्रेस विरोधी नेता बनकर उभरे। उन्होंने जनता दल और बसपा से भी जुड़कर सांसद बने, लेकिन 2004 में बीजेपी का दामन थाम लिया।
बीजेपी को आरिफ मोहम्मद खान इसलिए पसंद करती है क्योंकि वह मुस्लिम कट्टरपंथ और कांग्रेस की मुस्लिम राजनीति के खिलाफ मुखर रहे हैं। उनका विचारशील और प्रगतिशील दृष्टिकोण बीजेपी की विचारधारा से मेल खाता है। तीन तलाक, धारा 370 और यूनिफॉर्म सिविल कोड जैसे मुद्दों पर उनके विचार बीजेपी के साथ सामंजस्य रखते हैं। इसके अलावा, वह भारतीय राजनीति, समाजशास्त्र और भारतीय दर्शन पर लेक्चर देते हैं और मुस्लिम कट्टरपंथ के खिलाफ आवाज उठाते हैं। उनकी यह विचारधारा बीजेपी के लिए फायदे का सौदा साबित हुई है, क्योंकि इससे वह अपनी छवि को सुधारने और मुस्लिम वोट बैंक पर असर डालने की कोशिश कर रही है।
बीजेपी आरिफ मोहम्मद खान को एक प्रगतिशील मुस्लिम चेहरा मानती है और उनकी छवि को पार्टी के पक्ष में प्रस्तुत करने की कोशिश करती है। उनकी राज्यपाल नियुक्ति से यह संदेश दिया गया है कि बीजेपी मुस्लिम विरोधी नहीं बल्कि प्रगतिशील मुस्लिम नेताओं को आगे बढ़ाने की पक्षधर है। इसके साथ ही, बिहार में विधानसभा चुनाव के दृष्टिकोण से भी आरिफ मोहम्मद खान की नियुक्ति एक रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है, जहां उनकी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों के बीच प्रभावी पकड़ है, जो बीजेपी के लिए लाभकारी हो सकता है।