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राहुल गांधी का अगला सियासी कदम, क्या सपा और आरजेडी के लिए बनेगा चुनौती?

गुजरात के अहमदाबाद में कांग्रेस पार्टी इन दिनों गहरे राजनीतिक संकट से उबरने की जद्दोजहद कर रही है। पार्टी ने दो दिनी चिंतन शिविर आयोजित किया है, जिसमें संगठन को मजबूत करने, कमजोर होती पकड़ को लेकर आत्ममंथन और नए राजनीतिक एजेंडे पर मंथन हुआ। मंगलवार को कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की बैठक में राहुल गांधी ने खुलकर पार्टी की विफलताओं को स्वीकारते हुए भविष्य के लिए एक ठोस एक्शन प्लान पेश किया।

राहुल गांधी का स्पष्ट संदेश था – अब कांग्रेस ओबीसी, दलित और अल्पसंख्यकों पर केंद्रित राजनीति करेगी। उन्होंने माना कि कांग्रेस लंबे समय तक कुछ जातियों में उलझी रही, जिससे पिछड़ा वर्ग पार्टी से दूर हो गया। उन्होंने कहा कि अगर पार्टी को फिर से ताकतवर बनाना है, तो देश की बहुसंख्यक आबादी – खासकर ओबीसी, एससी, एसटी और महिलाएं – को अपना समर्थन आधार बनाना होगा।

कांग्रेस का नया एजेंडा: सामाजिक न्याय के जरिए वापसी की कोशिश

कांग्रेस अब न सिर्फ जातिगत जनगणना की जोरदार मांग कर रही है, बल्कि 50% आरक्षण की सीमा खत्म करने के पक्ष में भी खड़ी हो गई है। “जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी” का नारा अब कांग्रेस का सियासी नारा बनने जा रहा है। पार्टी जल्द ही इस मुद्दे को लेकर प्रस्ताव पास करने की तैयारी में है।

राहुल गांधी ने निजी क्षेत्र में भी आरक्षण की वकालत की है और कहा है कि देश के तमाम वंचित तबकों को केवल सरकारी योजनाओं में नहीं, बल्कि रोजगार, शिक्षा और सत्ता में भी भागीदारी मिलनी चाहिए।

सपा-आरजेडी के लिए बढ़ सकती है परेशानी

कांग्रेस की यह रणनीति उन दलों के लिए भी चिंता का सबब बन सकती है जो अब तक खुद को सामाजिक न्याय का ठेकेदार मानते रहे हैं। उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी (सपा) और बिहार की राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने वर्षों से ओबीसी, दलित और मुस्लिम वोटबैंक पर भरोसा कर अपनी सियासत खड़ी की है। अब कांग्रेस उसी मैदान में उतरने को तैयार है।

अगर कांग्रेस इस नए समीकरण में खुद को फिट कर लेती है, तो सपा और आरजेडी की सियासी जमीन खिसक सकती है। खासकर यूपी और बिहार जैसे राज्यों में, जहां कांग्रेस का आधार पहले से ही कमजोर है, पार्टी इन रणनीतियों के जरिए वापसी की राह तलाश रही है।

बीजेपी के लिए भी खतरे की घंटी?

बीजेपी 2014 के बाद से ओबीसी और दलित वोटों की बदौलत केंद्र की सत्ता में बनी हुई है। नरेंद्र मोदी के ओबीसी चेहरे ने इन वर्गों में बीजेपी की पकड़ मजबूत की। लेकिन अब कांग्रेस उसी वोटबेस को फिर से अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है।

बीजेपी जहां जातिगत जनगणना से दूरी बना रही है, वहीं कांग्रेस इसे अपने नए जनाधार का मजबूत हथियार बना रही है। पार्टी यह भी दिखाना चाह रही है कि आरक्षण के लिए असली लड़ाई उसने ही लड़ी है – चाहे 1951 का संविधान संशोधन हो या मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का फैसला।

कांग्रेस अब साफ तौर पर सामाजिक न्याय और भागीदारी की राजनीति को अपने पुनरुत्थान का आधार बना रही है। राहुल गांधी की नई रणनीति न सिर्फ बीजेपी को चुनौती देने वाली है, बल्कि कांग्रेस के सहयोगी माने जाने वाले दलों को भी सियासी असमंजस में डाल सकती है।अगर यह रणनीति कामयाब होती है, तो आने वाले चुनावों में राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल सकते हैं।

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