
राजीव गांधी, जिन्होंने भारत के छठे प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया, अपने समय में एक अनचाहे और अपरिपक्व राजनेता के रूप में देखे गए। उन्होंने राजनीति में आने की इच्छा नहीं जताई थी, लेकिन अपने छोटे भाई संजय गांधी की असमयिक मृत्यु के बाद, मां इंदिरा गांधी के आग्रह पर उन्होंने राजनीति में कदम रखा। मात्र चार साल बाद, इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, 40 वर्ष की उम्र में वे देश के प्रधानमंत्री बने। हालांकि, अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई ऐसे फैसले लिए जो भारत के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण साबित हुए, वहीं कुछ निर्णयों ने उनके निजी जीवन को भी प्रभावित किया।
बचपन और शिक्षा
राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त 1944 को मुंबई में हुआ था। वे भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नाती और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व फिरोज गांधी के पुत्र थे। उनके नाना ने उनका नाम अपनी पत्नी कमला नेहरू के नाम पर रखा। स्वभाव से वे शांत और अंतर्मुखी थे। पढ़ाई में उनकी विशेष रुचि नहीं थी। उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए लंदन का रुख किया, लेकिन अपनी पढ़ाई पूरी किए बिना ही भारत लौट आए।
व्यक्तिगत जीवन और करियर
इंग्लैंड में पढ़ाई के दौरान राजीव गांधी की मुलाकात इटली की सोनिया गांधी से हुई और बाद में दोनों ने शादी कर ली। पढ़ाई छोड़ने के बाद, उन्होंने पायलट बनने की ट्रेनिंग ली और एयर इंडिया में पायलट के रूप में कार्य किया। हालांकि, 1980 में संजय गांधी की असामयिक मृत्यु के बाद, मां इंदिरा गांधी के कहने पर वे राजनीति में आए और लोकसभा चुनाव जीतकर संसद सदस्य बने।
भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, कांग्रेस पार्टी ने राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी। उन्होंने तत्काल लोकसभा भंग कर चुनाव कराए और भारी बहुमत के साथ सत्ता में आए। हालांकि, अनुभव की कमी और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण उन्हें “अनचाहा” और “परिवारवाद का प्रतीक” जैसे आरोपों का सामना करना पड़ा।
अपने कार्यकाल में उन्होंने कई सुधार किए, जिनमें प्रशासनिक ढांचे में बदलाव और अर्थव्यवस्था को उदार बनाने के प्रयास प्रमुख थे। उन्होंने उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए कई नीतियां बनाईं और लाइसेंस राज को खत्म करने की दिशा में कदम उठाए।
शिक्षा, विज्ञान और तकनीकी विकास में योगदान
राजीव गांधी ने 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू कर शिक्षा को आधुनिक बनाने का प्रयास किया। उन्होंने देशभर में जवाहर नवोदय विद्यालयों की स्थापना कर ग्रामीण छात्रों को बेहतर शिक्षा का अवसर दिया।
वे भारत में कंप्यूटर और दूरसंचार क्रांति के जनक माने जाते हैं। उनके प्रयासों से सूचना प्रौद्योगिकी का विकास हुआ और देश में सुपर कंप्यूटर निर्माण को बढ़ावा मिला। उन्होंने विज्ञान और तकनीक को आगे बढ़ाने के लिए कई योजनाएं शुरू कीं, जिससे भारत आगे चलकर डिजिटल क्रांति की ओर बढ़ सका।
राजनीतिक और क्षेत्रीय सुधार
राजीव गांधी ने देश में शांति और स्थिरता स्थापित करने के लिए कई साहसिक कदम उठाए। उत्तर-पूर्व भारत में असम और मिजोरम समझौतों के माध्यम से शांति बहाली की कोशिश की। उन्होंने मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाया। पंजाब में आतंकवाद को नियंत्रित करने के लिए ऑपरेशन ब्लैक थंडर चलाया।
उन्होंने चीन के साथ राजनयिक वार्ता शुरू कर सभी को चौंका दिया। श्रीलंका में तमिल समस्या के समाधान के लिए इंडो-श्रीलंका समझौता किया, जो बाद में विवादित साबित हुआ।
बोफोर्स घोटाला और राजनीतिक पराजय
राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान बोफोर्स घोटाले ने उनकी छवि को गहरा धक्का पहुंचाया। इस घोटाले के चलते 1989 के आम चुनाव में कांग्रेस की हार हुई और उन्हें विपक्ष में बैठना पड़ा। हालांकि, जल्द ही सरकार अस्थिर हो गई और 1991 में नए आम चुनाव की घोषणा हुई।
1991 के चुनाव प्रचार के दौरान, 21 मई को तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में एक चुनावी रैली के दौरान लिट्टे (LTTE) उग्रवादियों ने आत्मघाती हमले में उनकी हत्या कर दी। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया और भारतीय राजनीति के इतिहास में एक बड़ा मोड़ ला दिया।
राजीव गांधी को एक युवा, आधुनिक सोच वाले और तकनीकी विकास को आगे बढ़ाने वाले नेता के रूप में याद किया जाता है। हालांकि, अनुभव की कमी और कुछ विवादों के कारण उनकी छवि को धक्का लगा, लेकिन उनकी दूरदृष्टि ने भारत के भविष्य को तकनीकी और शैक्षिक रूप से मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई