Posted By : Admin

घर वापसी को मजबूर हुआ मजदूर

लखनऊ -सरकार किसी भी प्रदेश की हो, राज्य में रहने वाले हर नागरिक की जिम्मेदारी उसकी होती है, लेकिन जब सरकार अपना और पराया करने लगे तो फिर कहने-सुनने को बचता ही क्या है। कोरोना संकट ने सरकारों के चेहरे से वो नकाब नोचकर फेंक सा दिया है, जिसे लगाकर वो जनता के हितैषी बनने का दिखावा करते थे। कुछ यही दर्द है उत्तर प्रदेश लौट रहे प्रवासी मजदूरों का। सालों तक दाना-दाना जोड़कर कमाया-बचाया, वो लॉक डाउन की भेंट चढ़ गया। बाकी रहा-सहा उन शातिरों ने घर पहुचाने की कीमत के नाम पर वसूल लिया। बहरहाल जैसे तैसे ये अपने घर तो पहुँच जाएंगे, लेकिन डर इस बात का भी है कि बिना किसी समुचित जांच-पड़ताल के इनकी वापसी कहीं पंजाब की तरह उत्तर प्रदेश को भी भारी न पड़ जाए।

उत्तर प्रदेश से काम की तलाश में अगर सबसे ज्यादा कामगार कहीं गए तो वो है महाराष्ट्र। 30 लाख से ज्यादा लोग यहां रोजी-रोटी कमाने के लिए इस राज्य में जा बसे। जो कमाया उसका एक हिस्सा अपने खाने-रहने में खर्च किया, कुछ बचाया और कुछ अपने मूल निवास में रहने वाले परिवार के पालन-पोषण को भेजा। कुल मिलाकर सब ठीक चल रहा था, लेकिन कोरोना संकटकाल में उनकी हालत पतली हो गई। खाने और खोली के किराया अदा करने को दमड़ी नहीं बची, तो सरकार से आस लगाई। मगर कुछ नहीं हुआ। देश मे कोरोना का सबसे ज्यादा प्रकोप झेल रहे महाराष्ट्र से इन श्रमिकों को लाने में उत्तर प्रदेश की सरकार को गुरेज नहीं है, लेकिन शर्त है कि सभी आने वालों की कोरोना जांच की जाए। अब 30 लाख से ज्यादा लोगों की जांच में महीनों लगेंगे, जिसके लिए किसी के पास वक्त नहीं है। ऐसे में ये गरीब मजदूर साइकल से,पैदल ट्रको में भरकर घर वापसी को मजबूर हैं।

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