पितृ दोष को सबसे बड़ा दोष माना जाता है। कुंडली में का नौवा घर धर्म का होता है। यह भाव पिता का भी माना गया है। यदि इस घर में राहु, केतु और मंगल अपनी नीच राशि में बैठे हों तो यह इस बात का संकेत है कि आपको पितृ दोष है। पितृ दोष के कारण जातक को मानसिक कष्ट, अशांति, धन हानि, गृह क्लेश जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जो लोग पिंडदान और श्राद्ध नहीं करते उनकी कुंडली में भी पितृ दोष योग होता है और अगले जन्म में वे भी पितृ दोष से पीड़ित होते हैं। पितृ दोष में पिंडदान और श्राद्ध कर्म करने से आपके पितरों को मोक्ष मिलेगा और सुख, शांति और वैभव भी मिलेगा।
इस समय पितरों का श्राद्ध बिल्कुल भी न करें
श्राद्ध कार्य दोपहर के समय करना चाहिए। वायु पुराण के अनुसार शाम के समय श्राद्धकर्म वर्जित है। मान्यताओं के अनुसार शाम का समय राक्षसों का समय माना जाता है। श्राद्ध कर्म कभी भी भूमि पर नहीं करना। उदाहरण के तौर पर अगर आप किसी रिश्तेदार के घर पर हैं और वहां श्राद्ध चल रहा है तो आपको वहां श्राद्ध करने से बचना चाहिए। अपनी भूमि पर किया गया श्राद्ध फलदायी है। हालाँकि, पुण्यतीर्थ या मंदिर या अन्य पवित्र स्थानों को भूमि नहीं माना जाता है। तो आप पवित्र स्थानों पर श्राद्ध कर सकते हैं।
श्रद्धा का क्या है महत्व, क्यों है ये इतना जरूरी?
ब्रह्मपुराण के अनुसार जो कुछ पितरों को लक्ष्य करके उचित समय, पात्र और स्थान पर उचित रीति से ब्राह्मणों को दिया जाता है, वह श्राद्ध कहलाता है। मिताक्षरा में लिखा है- पितरों से संबंधित किसी भी वस्तु या द्रव्य का उनके कल्याण हेतु तर्पण करने के उद्देश्य से किया गया त्याग ही श्राद्ध है।
याज्ञवल्कय श्राद्ध के बारे में बताते हैं कि वसु, रुद्र और आदित्य नामक पितर, जो श्राद्ध के देवता हैं, श्राद्ध से संतुष्ट होते हैं और मनुष्यों के पितरों को तृप्ति देते हैं। मत्स्य पुराण और अग्नि पुराण में भी उल्लेख है कि पितृगण श्राद्ध में दी गई वस्तुओं से संतुष्ट होकर अपने वंशजों को जीवन, संतान, धन, ज्ञान, स्वर्ग, मोक्ष, सभी सुख और राज्य देते हैं।