नई दिल्ली – इस बार परशुराम जयंती पंचाग भेद के कारण 25 अप्रैल शनिवार को प्रदोष काल में मनाई जा रही है. भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी का पृथ्वी पर अवतरण वैशाख मास की शुक्ल तृतीया तिथि को माता रेणुका के गर्भ से हुआ था. इस प्रकार अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम का जन्म माना जाता है. साथ ही यह मत भी है कि भगवान परशुराम का प्राकट्य काल ‘प्रदोष काल’ है.
इस साल 25 अप्रैल को यह दिन आने के कारण परशुराम जयंती शनिवार को मनाई जा रही है. कई स्थानों पर पारंपरिक मान्यता के अनुसार 26 अप्रैल को ही अक्षय तृतीया और भगवान परशुराम जयंती दोनों एक साथ मनाई जाएगी. इस समय पूरे देश में लॉकडाउन का पालन किया जा रहा है. इसलिए इस दिन घर पर ही भगवान परशुराम जी की पूजा की जाएगी. इस दिन सुबह स्नान करने के बाद मंदिर और पूजा आसन को शुद्ध करने के बाद भगवान परशुराम जी को पुष्प और जल अर्पित करें और उनका आव्हान करें. मान्यता है कि भगवान परशुराम विष्णु के ऐसे अवतार हैं जो हनुमानजी और अश्वत्थामा की तरह सशरीर पृथ्वी पर उपस्थित हैं. भगवान परशुराम को न्याय का देवता भी कहा जाता है.
त्रेतायुग में भगवान राम ने जब शिव धनुष को तोड़ा तो परशुराम जी महेंद्र पर्वत पर तपस्या में लीन थे. लेकिन जैसे ही उन्हें धनुष टूटने का पता चला तो क्रोध में आ गए. लेकिन जब उन्हें प्रभु श्रीराम के बारे में मालूम हुआ तो उन्होंने श्रीराम को प्रणाम किया बाद में श्रीराम ने परशुराम जी को अपना सुदर्शन चक्र भेट किया और बोले द्वापर युग में जब उनका अवतार होगा तब उन्हें इसकी जरूरत होगी. इसके बाद जब भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर में अवतार लिया तब परशुरामजी ने धर्म की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र वापिस कर दिया.
भगवान परशुराम का भाव इस जीव सृष्टि को इसके प्राकृतिक सौंदर्य सहित जीवंत बनाए रखना था. इस कारण वे प्रकृति प्रेमी और सरंक्षक थे. एक वे चाहते थे कि यह सारी सृष्टि पशु पक्षियों, वृक्षों, फल फूल औए समूची प्रकृति के लिए जीवंत रहे. उन्हें भार्गव के नाम से भी जाना जाता है. वे पशु-पक्षियों तक की भाषा समझते थे और उनसे बात कर सकते थे. यहां तक कि कई खूंखार जानवर भी उनके छूने मात्र से उनके मित्र बन जाते थे. उन्होंने बचपन में कई विद्याओं को सीख लिया था.